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श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन: राष्ट्रीय अस्मिता की अभिव्यक्ति

Vishwa Samvada Kendra by Vishwa Samvada Kendra
September 27, 2010
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श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन: राष्ट्रीय अस्मिता की अभिव्यक्ति

ayodhya ram mandir

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श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन: राष्ट्रीय अस्मिता की अभिव्यक्ति

श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन केवल हिन्दू मुस्लिम संघर्ष नहीं, मंदिर-मस्जिद विवाद नहीं यह राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीय का संघर्ष है। राष्ट्र माने केवल भू भाग, जमीन का टुकड़ा नहीं वरन् उस जमीन पर बसने वाले समाज में विद्यमान एकत्व की भावना है। यह भावना देश का इतिहास, परम्परा, संस्कृति से निर्माण होती है।

राम इस देश का इतिहास ही नहीं बल्कि एक संस्कृति और मर्यादा का प्रतीक हैं, एक जीता जागता आदर्श हैं। इस राष्ट्र की हजारों वर्ष की सनातन परम्परा के मूलपुरुष हैं। हिन्दुस्थान का हर व्यक्ति, चाहे पुरुष हो, महिला हो, किसी प्रांत या भाषा का हो उसे राम से, रामकथा से जो लगाव है, उसकी जितनी जानकारी है, जितनी श्रद्धा है और किसी में भी नहीं है। भगवान् राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। राम राष्ट्र की आत्मा हैं।

ayodhya ram mandir

संविधान निर्माताओं ने भी संविधान की प्रथम प्रति में लंका विजय के बाद पुष्पक विमान में बैठकर जाने वाले श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण जी का चित्र दिया है। संविधान सभा में तो सभी मत-मतान्तरों के लोग थे। सभी की सहमति से ही चित्र छपा है। उस प्रथम प्रति में गीतोपदेश करते भगवान् श्रीकृष्ण, भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर आदि श्रेष्ठ पुरूषों के चित्र हैं। ये हमारे राष्ट्रीय महापुरुष हैं। अतः ऐसे भगवान् राम के जन्मस्थान की रक्षा करना हमारा संवैधानिक दायित्व भी है।

डॉ0 राम मनोहर लोहिया का कथन

समाजवादी विचारधारा के सुप्रसिद्ध, भारतीय विद्वान् डॉ0 राममनोहर लोहिया जी को हम सब जानते हैं। उन्होंने कहा है-‘‘राम-कृष्ण-शिव हमारे आदर्श हैं। राम ने उत्तर-दक्षिण जोड़ा और कृष्ण ने पूर्व-पश्चिम जोड़ा। अपने जीवन के आदर्श इस दृष्टि से सारी जनता राम-कृष्ण-शिव की तरफ देखती है। राम मर्यादित जीवन का परमोत्कर्ष हैं, कृष्ण उन्मुक्त जीवन की सिद्धि हैं और शिव यह असीमित व्यक्तित्व की संपूर्णता है। हे भारत माता ! हमें शिव की बुद्धि दो, कृष्ण का हृदय दो और राम की कर्मशक्ति, एकवचनता दो।’’ ऐसे राष्ट्रीय महापुरूष के जन्मस्थान की रक्षा करना हमारा राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। देश की एकता और अखण्डता के लिए करणीय कार्य है।

सोमनाथ मंदिर -पुनर्निर्माण

श्रीराम जन्मभूमि राष्ट्रीय अस्मिता व स्वाभिमान का विषय है। अपमान का परिमार्जन करना ही पुरुषार्थ है। इसके लिए यह आन्दोलन है। स्वाभिमान जागरण से ही देश खड़ा होता है और सारी समस्याओं का हल करने का सामर्थ्य बढ़ता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसा प्रयत्न अपवाद स्वरूप में ही हुआ। सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण यह अपवाद था। यह मंदिर 1026 से इक्कीस बार तोड़ा गया परन्तु बार-बार उसका पुनर्निर्माण होता रहा। आखिर औरंगजेब के आदेश से सन् 1706 में यह मंदिर तोड़ा गया और वहां मस्जिद निर्माण की गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गुलामी के चिह्न हटाने और स्वाभिमान जागरण के लिए सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। महात्मा गांधी जी ने उसका समर्थन किया। पं0 नेहरूजी के मंत्रिमण्डल ने जिसमें मौलाना आजाद भी एक मंत्री थे, सभी ने सोमनाथ मंदिर निर्माण की अनुमति दी। संसद ने प्रस्ताव पारित किया।

उस समय देश के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी थे। उनके करकमलों से 11 मई, 1951 को सोमनाथ में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। उनके वहां जाने का कुछ सेक्युलरिस्टों ने विरोध किया परन्तु उन्होंने माना नहीं। यह देश की अस्मिता का, प्रतिष्ठा का विषय है, ऐसी डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की भावना थी। उस समय सोमनाथ में उन्होंने कहा, ‘‘सोमनाथ भारतीयों का श्रद्धा स्थान है। श्रद्धा के प्रतीक का किसी ने विध्वंस किया तो भी श्रद्धा का स्फूर्तिस्रोत नष्ट नहीं हो सकता। इस मंदिर के पुनर्निर्माण का हमारा सपना साकार हुआ। उसका आनन्द अवर्णनीय है।’’ इस कार्यक्रम में भगवान् सोमनाथ को 121 तोपों से सलामी दी गई थी।’’

25 दिसम्बर 1947 को दिल्ली के बिरला हाउस में महात्मा गांधी जी द्वारा दिया गया प्रवचन महत्व का है। एक उर्दू समाचार पत्र में लेख आया था कि अगर सोमनाथ होगा तो फिर से गजनी आयेगा। उस प्रवचन में महात्मा गांधीजी बोले–मोहम्मद गजनी ने जंगली, हीन काम किया। उसके बारे में यहां के मुसलमान गर्व का अनुभव करते हैं तो यह दुर्भाग्य का विषय है। इस्लामी राज में जो बुराइयाँ हुईं, उन्हें मुस्लिमों को समझना और कबूल करना चाहिए। अगर यहां के मुसलमान फिर से गजनी की भाषा बोलेंगे तो इसे यहां कोई बर्दाश्त नहीं करेगा।’’

सोमनाथ मंदिर के सम्बन्ध में जो भावना महात्मा गांधी, सरदार पटेल, डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद आदि महानुभावों की थी, वही भावना श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में हमारी है।

गुलामी के चिह्न हटाना

1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के चौराहों में, बगीचों में लगी विक्टोरिया रानी और पंचम जार्ज की मूर्तियां हटाई गईं। सड़कों के नाम बदले, दिल्ली का इर्विन अस्पताल जयप्रकाश नारायण अस्पताल बना, मिण्टो ब्रिज को शिवाजी ब्रिज कहने लगे। मुम्बई में विन्सेट रोड डॉ0 बाबा साहेब अम्बेडकर रोड हो गया और विक्टोरिया टर्मिनल रेलवे स्टेशन का नाम छत्रपति शिवाजी टर्मिनल हो गया। ये पुराने नाम गुलामी के चिह्न थे इसीलिए हटाए गए। बाबरी ढांचा गुलामी का चिह्न था; राम जन्मभूमि मंदिर यह स्वतंत्रता का चिह्न है।

पोलैण्ड का चर्च

आधा यूरोप अनेक साल इस्लामी वर्चस्व में रहा। उस समय इस्लामी आक्रान्ताओं ने अनेक चर्च गिराकर वहां मस्जिदें बनाईं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन ईसाई यूरोपियन देशों ने ऐसी मस्जिदें ध्वस्त करके वहां फिर से चर्च बनाए। यह अपमान का परिमार्जन था। 1815 में पोलैण्ड रूस ने जीता। जीतने के बाद रूस ने पोलैण्ड की राजधानी वारसा में एक बड़े चौराहे पर एक चर्च का निर्माण किया। प्रथम महायुद्ध की समाप्ति के समय 1918 में पोलैण्ड स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पोलैण्ड की सरकार ने रूस निर्मित चर्च गिराया और उसी जगह दूसरे चर्च का निर्माण किया। रूस और पोलैण्ड दोनों ईसाई हैं, तो भी रूसी चर्च क्यों गिराया गया ? स्वाभिमानी पोलैण्ड की सरकार का उत्तर था-रूसी चर्च गुलामी का चिह्न था, इसीलिए वह गिराया और अब यह नया चर्च हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है। इसको कहते हैं राष्ट्रीय स्वाभिमान। इसी भावना से अयोध्या, मथुरा, काशी के धर्मस्थान मुक्त होने चाहिए।

छत्रपति शिवाजी का सपना

हम सब जानते हैं कि 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तोडा और वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई। यह समाचार मिलते ही शिवाजी ने औरंगजेब को चेतावनी देने वाला और काशी विश्वनाथ सहित अन्य धर्मस्थान मुक्त करने का संकल्प व्यक्त करने वाला पत्र लिखा था। अपने अन्य सरदार, मंत्रियों के साथ धर्मस्थान मुक्ति की चर्चा छत्रपति शिवाजी करते थे। स्वयं छत्रपति शिवाजी महाराज ने अनेक मंदिरों का पुनर्निर्माण किया था। वे जब दक्षिण भारत में गए थे तो आज के तमिलनाडु में दो मंदिरों का पुनर्निर्माण किया। कुछ वर्ष पहले दोनों मंदिर गिराकर मुसलमानों ने वहां मस्जिदें बनायी थी। मस्जिदें गिराकर फिर से मंदिर का निर्माण किया गया। सभी मराठा सरदार, पेशवा इस संकल्प पूर्ति के लिए प्रयत्न करते थे। सुप्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग त्र्यम्बकेश्वर, तीर्थ क्षेत्र नासिक स्थित सुंदर नारायण मंदिर, उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर जैसे अनेक मंदिरों का मुगल राज ने विध्वंस किया था। इन मंदिरों का पुनर्निर्माण मराठों ने बाद में किया था।

जब मराठों के विजयी घोड़े उत्तर भारत में दौड़ने लगे तो धर्मस्थान मुक्ति का प्रयत्न प्रारंभ हुआ। सन् 1751 से 1759 में अवध के नवाब को अयोध्या, प्रयाग, काशी की मुक्ति की शर्त लगाकर ही मदद की गयी थी। मराठों का लगातार दबाव रहा था। दुर्भाग्य से पानीपत की सन् 1761 की लड़ाई में हार हुई और काशी, अयोध्या उस समय मुक्त नहीं हो सके।

भारत के मुसलमान ध्यान दें !

हमारा बाबर का क्या सम्बन्ध है ? वो एक विदेशी, विधर्मी हमलावर था। बाबर मध्य एशिया का था। उसने पहले अफगानिस्तान जीता, बाद में भारत में आया। बाबर की कब्र अफगानिस्तान में है। भारत का एक प्रतिनिधि मण्डल 1969 में अफगानिस्तान गया था। उसमें सुप्रसिद्ध विचारक, अफगानिस्तान-नीति के विशेषज्ञ डॉ0 वेदप्रताप वैदिक भी थे। वे बाबर की कब्र देखने गए। वह कब्र जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी। उन्होंने एक अफगानी नेता से पूछा, बाबर के कब्र की ऐसी दुरावस्था क्यों ? अफगान नेता का उत्तर था-बाबर का हमारा क्या सम्बन्ध ? बाबर एक विदेशी हमलावर था, उसने हमारे ऊपर आक्रमण किया, हमें गुलाम बनाया। वह मुसलमान था इसीलिए यह कब्र हमने गिरायी नहीं। परन्तु जिस दिन गिरेगी, उस समय हरेक अफगानी को आनन्द होगा। बाबर हमारा शत्रु था, यह बोलने वाले श्री बबरक करमाल 1981 में अफगान प्रधानमंत्री बने। उनकी भावना भारत के मुसलमानों ने ध्यान में लेनी चाहिए।

इण्डोनेशिया की 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। वह घोषित मुस्लिम देश है। परन्तु उनका सर्वश्रेष्ठ आदर्श आज भी ‘‘राम’’ है। वहां के प्राथमिक विद्यालय में रामायण का अध्ययन अनिवार्य है। भारत में क्यों नहीं ? इण्डोनेशिया 700 वर्ष पहले हिन्दू-बौद्ध था। उन्होंने अपनी परंपराएं नहीं छोड़ी है।

ईरान मुस्लिम देश है परन्तु वे रूस्तम, सोहराब को राष्ट्रीय पुरूष मानते हैं। रूस्तक, सोहराब तीन हजार साल पहले हुए और वे पारसी थे; मुस्लिम नहीं। मिस्र देश में पिरामिड राष्ट्रीय प्रतीक है। पिरामिड साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व के हैं और उस समय इस्लाम था ही नहीं। भगवान् राम हजारों वर्ष पूर्व हुए; उस समय इस्लाम था ही नहीं। भारत के मुसलमान भी 200-400-800 साल पहले हिन्दू ही थे। तो भारत के मुस्लिम राम को अपना पूर्वज, भारत का राष्ट्रीय महापुरूष क्यों नहीं मानते ?

ईरान और मिस्र के मुस्लिमों का आदर्श यहां के मुसलमान रखेंगे तो सारी समस्या का हल हो जायेगा। भारत का उत्थान हो जायेगा। राष्ट्रीय एकता आयेगी।

राष्ट्रीयता बनाम अराष्ट्रीयता

भगवान् श्रीराम भारत की पहचान है, राष्ट्रीयता के प्रतीक हैं। बाबर विदेशी हमलावर, हमारा शत्रु था। बाबर के संबंध में गुरू नानकदेवजी ने कहा है, बाबर का राज माने पाप की बारात। उस बाबर ने मंदिर तोडा, उस बाबरी ढांचे के लिए चिल्लाना यह अराष्ट्रीयता है। हम राम के भक्त है या बाबर के वारिस यह प्रश्न सबको पूछना चाहिए ? राम मंदिर निर्माण यह राष्ट्रीयता का विषय है। उस पर समझौता नहीं हो सकता।

श्री. विनायकराव देशपाण्डे

(श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर-निर्माण आन्दोलन से सक्रियरूपेण जुड़े लेखक विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री हैं)

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