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RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat performed Bhoomi Poojan Ceremony of new building of KESHAVAKUNJ at New Delhi

Vishwa Samvada Kendra by Vishwa Samvada Kendra
November 14, 2016
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RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat performed Bhoomi Poojan Ceremony of new building of KESHAVAKUNJ at New Delhi
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New Delhi Nov 13: RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat performed Bhoomi Poojan Ceremony of new building of KESHAVAKUNJ, RSS Karyalaya at New Delhi. Senior BJP leader LK Advani, Home Minister Rajnath Sing, RSS Sahsarakaryavah Suresh Sony, BJP President Amit Shah, others were present on the occassion.

उत्कट आत्मीयता है संघ कार्य का आधार : डॉ. मोहन भागवत जी

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नई दिल्ली, इंविसंके ( 13 नवम्बर). नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने रविवार को केशव स्मारक समिति के नए भवन (केशव कुंज, संघ कार्यालय) के निर्माण का भूमि पूजन व शिलान्यास किया. कार्यक्रम में उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि जब अपना कार्य शुरु हुआ, तब हम साधनहीन अवस्था में थे और आज भी साधनहीन अवस्था में काम करने की हमारी शक्ति भी है और तैयारी भी है, क्योंकि अपने कार्य का यह स्वभाव है.

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डॉ. साहब जिन कागजों पर पत्र लिखते थे, उसके शीर्षक में एक मुद्रित पंक्ति रहती थी. कार्य की सिद्धि तो कार्यकर्ताओं के सत्व के भरोसे होती है, उपकरणों का महत्व नहीं रहता. कार्य हमने शुरु किया, तब हमने विचार ही नहीं किया कि हमारे पास साधन क्या हैं और कौन से साधन हमको चाहिए. अपने देश, राष्ट्र, समाज उसका दुःख, उसकी दुरावस्था हमारी प्रेरणा रही और जैसे अपने किसी अत्यंत आप्त को संकट में देख कर आदमी बिना विचार किए दौड़ पड़ता है, वैसे हम दौड़े और वही उत्कट आत्मीयता आज भी हमें दौड़ा रही है. हमको किसी साधन की आवश्यकता नहीं है. इसलिए अपना भवन बनेगा, यह कहा गया है कि उसमें मुख्यतः संघ कार्यालय रहेगा. लेकिन संघ ने अपने नाम पर कोई प्रॉपर्टी नहीं है. तरह-तरह के सेवा कार्य करने वाले न्यासों के भवन जगह-जगह है, यह भी वैसा ही रहेगा. लेकिन एक तांत्रिकता है, विधि-विधान के तहत निर्दोष व्यवस्था, उसका पूर्णतः पालन हो ऐसी व्यवस्था करना, उसको उस विधि का जो भाव है, उसके अनुसार ही चलाना. यह स्वयंसेवक का स्वभाव रहता है, वैसे ही चले. लेकिन हम सब लोग जानते हैं कि कुल मिलाकर ऐसे सब भवनों को, वहां-वहां के स्वयंसेवक, वहां-वहां का समाज भी संघ कार्यालय के रूप में जानता है. अब हमारी ऐसी स्थिति है कि अगर आवश्यकता बढ़ी है तो उस आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए न्यूनतम आवश्यक जितना है, उतना हम जुटा सकते हैं, और वो जुटाते हैं. क्योंकि साधनहीन निष्कांचन रहने में गौरव अथवा वैसे रहने का कोई हमारा शौक नहीं है. कार्य के लिए जितना आवश्यक है उतना चाहिए. पहले था ही नहीं, बिना उसके भी काम किया. अब हो सकता है इसके कारण कार्य करने में सुविधा, कार्य करने की गति में वृद्धि होती है तो हम करेंगे. लेकिन पहली बात तो यह है कि इन साधनों के स्वामी हम रहते है, उस पर हम निर्भर नहीं रहते. दूसरी बात है साधन भी एक तांत्रिकता है.

संघ कार्यालय है यानि क्या है, वो भवन ही होना चाहिए, ऐसा भी है क्या, ऐसा नहीं है. संघ प्रारंभ हुआ, तब संघ का कोई कार्यालय नागपुर में नहीं था. मोहिते शाखा लगी, वो पुराना एक बाड़ा था,उसके खंडहर में एक तलघर भी था, तलघर के दो तीन कमरे साफ करके उसमें कार्य चलता रहा. डॉ. साहब सुबह एक मोहल्ले में एक घर में, दोपहर एक मोहल्ले में एक घर में ऐसे बैठते थे, वहीं से काम होता था और बाकी समय वह अपने घर में होते थे. वहीं पर बैठकें होती थीं. बाद में वहां एक दशोत्तर नाम के सज्जन थे, उन्होंने अपने बाड़े में एक कमरा खाली कर दिया बिना किराये अपना काम वहां से चले तो बहुत दिन वहां पर कार्यालय चला. फिर धीरे-धीरे आज जहां कार्यालय है, वहां की भूमि हमको प्राप्त हुई और 1940 में वहां हमने आवश्यक जैसा भवन बनाया. तो भवन है, भवन होना चाहिए, भवन बन रहा है, ये हमारे लिए आनंद की बात है. कैसे बनेगा, कैसा बनेगा, हमारी उत्सुकता रहना भी स्वाभाविक है. लेकिन हम जानते हैं कि केवल भवन बनने से हम उसको कार्यालय नहीं कहते. कार्यालय एक वातावरण का नाम है. केशव स्मारक समिति का भवन रहेगा, उसमें संघ कार्यालय का काम चलेगा. हो सकता है कि जैसे केशव कुंज के साथ-साथ इतिहास संकलन समिति का कार्यालय था, संस्कृत भारती वाले थे. ऐसे अनेक संगठनों के नाम पट्टा यहां पर थे, वैसे वहां पर भी होगा. लेकिन कुल मिलाकर उस भवन में जाने से हम कहेंगे संघ कार्यालय क्योंकि ये एक या अनेक संस्थाओं का कार्यालय, ऐसा उसका स्वरूप नहीं रहता है. हम जानते हैं कि हम सब लोगों का एक कुटुंब है और उस कुटुंब का वो स्थान है. कौटुंबिक वातावरण रहता है, वो आत्मीयता रहती है, परस्पर संबंधों की वह पवित्रता रहती है. भारत माता की पूजा का मंदिर हम अपने भावों में मानते हैं, तो उस पूजा भाव की पवित्रता सारे वातावरण में अनुभव होती है. अपने समाज के प्रति संवेदना हमको कार्य में प्रवृत्त करती है, तो कार्यालय में जाने से वो संवेदना अपने हृदय में प्रस्फुरित होने से समाज के लिए सक्रिय होने की प्रेरणा भी मिलती है. अब स्वयंसेवक मिलकर भवन को अच्छा बनाएंगे, पर्याप्त बनाएंगे, सारा काम बारिकी से ठीक संपन्न हो जाएगा. परंतु कार्यालय का ये भवन पूरा बन जाने के बाद हो सकता है, गृह प्रवेश का भी ऐसा ही एक कार्यक्रम होगा. लेकिन उस समय कार्यालय भवन का काम पूरा हो गया, ऐसा नहीं माना जाएगा. क्योंकि कार्यालय के भवन के अंदर कार्यालय की सृष्टि करना, ये बाद में हम सब लोगों को मिलकर करना पड़ेगा. वही आत्मीयता, वही पवित्रता, वही शुचिता, वही प्रेरणा, वहीं स्वच्छता, जैसे पहले से चलती आ रही है. उस भवन में भी वही वातावरण बने तो फिर वो नाम सार्थक होंगे. अभी शिलान्यास के समय हम मन की तैयारी कर रहे होंगे या कर चुके होंगे कि भवन के लिए परिश्रम, व्यय की व्यवस्था अपने को करनी है. लेकिन साथ-साथ हम इसकी भी तैयारी करें कि जो नया भवन बनेगा, उसमें संघ का कार्यालय, उस प्रकार से वहां के भावों की परिपूर्ति करते हुए, हम सब लोग बनाएंगे. सब स्वयंसेवकों के लिए और समाज के सभी लोगों के लिए वो एक पवित्रता का,प्रेरणा का, शुचिता का, आत्मीयता का केंद्र बने, इसकी चिंता भी हमको करना है. ये दायित्व एक भवन बनाने के निमित्त बढ़ा हुआ, बड़ा भवन निर्माण करते हुए बढ़ा हुआ, बड़ा दायित्व भी हम अपने सिर पर ले रहे हैं. इसका ध्यान रखकर हम सब लोग अपनी तैयारी करें.

कार्यक्रम में सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी, दिल्ली प्रांत संघचालक कुलभूषण आहुजा जी, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी जी, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ जी, अमित शाह जी, केशव समारक समिति के अध्यक्ष श्याम सुंदर अग्रवाल जी, महामंत्री मूलचंद जैन जी, समिति के उपाध्यक्ष एवं दिल्ली प्रांत सह संघचालक आलोक कुमार जी, सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.

कार्यक्रम के पश्चात केशव स्मारक समिति के उपाध्यक्ष आलोक कुमार जी ने पत्रकार वार्ता में कहा कि वर्तमान संघ कार्याल की भूमि सन् 1947 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरू जी ने नाम हुई थी. सन् 1972 में श्रीगुरू जी ने निर्णय लिया कि संपत्ति अपने नाम नहीं रखनी, तत्पश्चात केशव स्मारक समिति का गठन हुआ और भूमि समिति के नाम की गई. उस समय आवश्यकता के अनुसार भवन का निर्माण किया गया, अब कार्य को देखते हुए बड़े भवन की आवश्यकता अनुभव हुई तो नए भवन की योजना बनी.

उन्होंने बताया कि नया भवन सात मंजिला होगा, और उसमें 700 गाड़ियों की पार्किंग की सुविधा होगी. भवन में तीन ब्लॉक होंगे, अंतिम ब्लॉक में वरिष्ठ अधिकारियों के आवास की व्यवस्था रहेगी. भवन के निर्माण पर करीब 70 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है और तीन साल में निर्माण कार्य पूरा होने की संभावना है. नए भवन में दिल्ली प्रांत कार्यालय, केंद्रीय व क्षेत्र कार्यालय, प्रचार विभाग की आवश्यकता के अनुसार कार्यालय, व आवास व्यवस्था, पुस्तकालय, डिस्पेंसरी भी होगी.

उन्होंने कहा कि नए भवन के निर्माण के लिए नक्शा पास करवाने के साथ ही समस्त विभागों से अनुमति लेने की प्रक्रिया वर्ष 2013 में शुरू की गई थी. जो अब 2016 में पूरी होने के पश्चात निर्माण कार्य शुरू किया जा रहा है. दिल्ली में एक लाख के करीब स्वयंसेवक व संघ हितैषी हैं, समय व आवश्यकता अनुसार भवन निर्माण के लिए उनसे ही राशि एकत्रित की जाएगी. उनके साथ प्रांत कार्यवाह भारत भूषण जी भी उपस्थित थे.

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