• Samvada
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
Monday, February 6, 2023
Vishwa Samvada Kendra
No Result
View All Result
  • Login
  • Samvada

    ಪ್ರಬೋದಿನೀ ಗುರುಕುಲಕ್ಕೆ NIOS ಅಧಿಕಾರಿಗಳ ಭೇಟಿ

    ಮಾರ್ಚ್ ೧೧ರಿಂದ ೧೩ರವರೆಗೆ ಗುಜರಾತಿನಲ್ಲಿ ಅಖಿಲ ಭಾರತ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಸಭಾ

    Evacuation of Indians stranded in Ukraine by Government of India

    Ukraine Russia Crisis : India abstained from UNSC resolution

    Trending Tags

    • Commentary
    • Featured
    • Event
    • Editorial
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
  • Samvada

    ಪ್ರಬೋದಿನೀ ಗುರುಕುಲಕ್ಕೆ NIOS ಅಧಿಕಾರಿಗಳ ಭೇಟಿ

    ಮಾರ್ಚ್ ೧೧ರಿಂದ ೧೩ರವರೆಗೆ ಗುಜರಾತಿನಲ್ಲಿ ಅಖಿಲ ಭಾರತ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಸಭಾ

    Evacuation of Indians stranded in Ukraine by Government of India

    Ukraine Russia Crisis : India abstained from UNSC resolution

    Trending Tags

    • Commentary
    • Featured
    • Event
    • Editorial
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
No Result
View All Result
Samvada
Home Articles

टीम अण्णा की नई राजनीतिक पार्टी?: MG Vaidya writes

Vishwa Samvada Kendra by Vishwa Samvada Kendra
September 17, 2012
in Articles
245
0
टीम अण्णा की नई राजनीतिक पार्टी?: MG Vaidya writes

MG Vaidya, RSS Veteran

491
SHARES
1.4k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

टीम अण्णा की बहुचर्चित राजनीतिक पार्टी अभी तक तो प्रकट नहीं हुई. लेकिन इसका आश्‍चर्य करने का कारण नहीं. राजनीतिक पार्टी स्थापन करना और उसे चलाना आसान काम नहीं. तुलना में, कोई आंदोलन शुरू करना, वह लंबे समय तक चलाना और उसके लिए कोई मंच स्थापन करना, आसान है.- – मा. गो. वैद्य 

MG Vaidya, RSS Veteran

अंतर्विरोध
अण्णा हजारे समझदार है. इसलिए उन्होंने प्रारंभ से ही स्वयं को इस उठापटक से दूर रखा. उन्होंने नि:संदिग्ध रूप में बताया कि, मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी का सदस्य नहीं बनूंगा. लेकिन उनके सब भक्तों को यह मान्य नहीं. अण्णा के सर्वाधिक निकट माने जाने वाले अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक पार्टी बनाने का सर्वाधिक उत्साह है. ‘भ्रष्टाचार विरोधी भारत’ इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाली किरण बेदी को भी नई राजनीतिक पार्टी मान्य नहीं. इतना ही नहीं, केजरीवाल और अन्य लोगों के, भाजपासहित सब पार्टीयॉं भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है, इस अभिप्राय से भी वे सहमत नहीं. केजरीवाल का नई राजनीतिक पार्टी बनाने का उत्साह जैसे जैसे बढ़ने लगा, वैसे-वैसे, अण्णा के साथ भ्रष्टाचार के विरुद्ध अग्रस्थान पर रहने वाले अन्य अनेक कार्यकर्ता उसे विरोध करने लगे. सुनीता गोधरा और अन्य तीनों ने नई राजनीतिक पार्टी की स्थापना को सार्वजनिक रूप में विरोध किया है. उन्होंने अण्णा से बिनति की है कि, वे इस उठापटक से दूर रहे.

अनोखी बात नहीं
इसका अर्थ यह नहीं कि, नई राजनीतिक पार्टी बनाने की आकांक्षा रखना, पापकृत्य है, जिससे जननेता दूर रहे. हमने जनतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार की है. मतलब हमने हमारे प्रतिनिधियों द्वारा शासित होने को अनुमति प्रदान की है. प्रतिनिधियों का चुनाव हम करेंगे. यह प्रतिनिधि सामान्यत:, किसी न किसी पार्टी से जुड़े होगे. वे निर्दलीय भी हो सकते हैं. लेकिन दुनिया में की जनतांत्रिक व्यवस्था -फिर वह संसदीय हो या अध्यक्षीय- राजनीतिक पार्टीयों द्वारा ही चलाई जाती है. अनेकों को एक स्थान से जोडने की क्षमता पार्टी, मतलब उसके वैचारिक सिद्धांतों में, उसकी नीतियों में, उसके कार्यक्रमों में और नेतृत्व में हो सकती है. इसलिए राजनीतिक पार्टीयॉं आवश्यक है. हमारे देश में भी स्वतंत्रता के बाद जब हमने संसदीय जनतांत्रिक प्रणाली स्वीकार की, तब अनेक पार्टीयों का उदय हुआ था. उनमें से कुछ समय की गर्त मे खो गई. अब कहॉं है राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी या कामराज की कॉंग्रेस (ओ), या अशोक मेहता की प्रजा समाजवादी पार्टी अथवा करपात्री महाराज की रामराज्य परिषद? यह पुरानी पार्टीयॉं मिट गई, तो नई पार्टीयों का उदय भी हुआ. इस कारण केजरीवाल के मन में नई राजनीतिक पार्टी स्थापन करने का विचार पक्का हो रहा होगा, तो उसमें कोई अनुचित या अनोखी बात नहीं.

READ ALSO

ಮಾತಿನ ಕಠಿಣ ಕ್ರಮ, ಇನ್ನೆಷ್ಟು ದಿನ?

ದೇಶದ ಸುರಕ್ಷತೆಗಾಗಿ ಅಗ್ನಿಪಥ!

एक उदाहरण
मुझे यहॉं यह अधोरेखित करना है कि, ऐसी राजनीतिक पार्टी बनाना और उसे चलाना आसान काम नहीं. अब मुझे वर्ष निश्‍चित याद नहीं. शायद २००५ या २००६ होगा. उमा भारती के मन में नई राजनीतिक पार्टी बनाने का विचार जड़ पकड़ रहा था. उनके किसी हितचिंतक ने उन्हें मेरी भेट लेने की सलाह दी. वे मुझसे मिलने आई. दो-ढांई घंटे तक चर्चा की. भाजपा में भ्रष्टाचारी घुसे हैं, ऐसा वे बातों में कह गई. मैंने प्रश्‍न किया, तुम्हारी पार्टी में भ्रष्टाचारी नहीं आएंगे, इसकी गारंटी कौन देगा? उनके और भी कुछ मुद्दे थे. मैंने कहा, आप कोई मंच स्थापन करो. उसके माध्यम से यह मुद्दे उठाओ. मंच के लिए, संविधान आदि की आवश्यकता नहीं होती. मंच चुनाव में भी भाग ले सकता है. और, उसे बरखास्त करना भी आसान होता है. उन्हें मेरी सलाह पसंद नहीं आई. उन्होंने पार्टी बनाई. उसका क्या हुआ यह सर्वविदित है.

प्रयोजन समाप्ति के बाद…
अण्णा हजारे का एकसूत्री कार्यक्रम है. सशक्त लोकपाल एवं लोकायुक्त की नियुक्ति. कल्पना बहुत अच्छी है. उन्होंने, इस बारे में बनाए कानून का प्रारूप भी उत्तम है. क्या लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति से सारा भ्रष्टाचार समाप्त होगा, ऐसी शंका, शंकासुरों ने उपस्थित करने पर मैंने, इसी स्तंभ में उसकी आलोचना की थी. खुनी व्यक्ति को सज़ा हो, ऐसा कानून होना चाहिए या नहीं, क्या ऐसा प्रश्‍न हम कभी पूछते है? ऐसा कानून होते हुए भी खून होते नहीं? कानून की क्षमता की भी एक मर्यादा होती है और बहुत कुछ तो, जिस यंत्रणा पर कानून का पालन करा लेने की जिम्मेदारी होती है, उस यंत्रणा पर सब निर्भर होता है. सारांश यह कि, सशक्त लोकपाल होना ही चाहिए. उसके लिए नया कानून आवश्यक है. लेकिन राजनीतिक पार्टी की स्थापना के लिए और अस्तित्व के लिए इतना एकसूत्री कार्यक्रम पर्याप्त नहीं होता. एक बार सशक्त लोकपाल का कानून बन गया, तो फिर क्या? उसके बाद पार्टी के अस्तित्व का क्या प्रयोजन? प्रयोजन समाप्त होने के बाद पार्टी भी समाप्त होती है. संयुक्त महाराष्ट्र समिति का उदाहरण देखे. भाषाधारित राज्य रचना की जाने के बाद भी मराठी भाषिकों को उनकी भाषा का अलग राज्य नहीं मिला. यह अन्याय था. वह राज्य मिलना चाहिए इसके लिए संयुक्त महाराष्ट्र समिति बनी. भिन्न भिन्न विचारों के और प्रवृत्ति के लोग एकत्र आए और उन्होंने एक प्रभावी आंदोलन खड़ा किया. उससे संयुक्त महाराष्ट्र बना. संयुक्त महाराष्ट्र समिति का प्रयोजन समाप्त हुआ और वह समिति भी समाप्त हुई. अनेकों ने समिति का रूपांतर एक नई राजनीतिक पार्टी में करने का उद्योग किया. लेकिन वह सफल नहीं हुआ.
और भी एक उदाहरण चिंतनीय है. आपात्काल के विरुद्ध के संघर्ष में अनेक पार्टीयॉं एकत्र आई थी. उन सब को मिलाकर एक पार्टी बनाए, ऐसा प्रस्ताव आया. वह, जेल में हमारे सामने भी आया. उस पर चर्चा हुई. मेरा मत तब भी यही था कि, ऐसी बनी पार्टी टिकेगी नहीं. कारण वह एकात्म नहीं हो सकेगी. जेल में हमारे साथ वामपंथी विचारधारा के भी कुछ कैदी थे. उनका स्वभाव और वर्तन हमारे ध्यान में आया. हमारी सूचना थी कि एक संघीय पार्टी (फेडरल पार्टी) बनाए. इससे हर पार्टी का अलग संगठन रहेगा और वह संघीय पार्टी के समान अधिकार प्राप्त घटक रहेगी. लेकिन एक पार्टी बनाने का विचार अधिक बलवान सिद्ध हुआ. जनता पार्टी बनी. सत्ता में भी आई. तीन वर्ष से कम समय में टूट भी गई. उसका यह भविष्य अटल था, कारण पार्टी एकात्म बनने के लिए उपयुक्त सामग्री और उपयुक्त स्वभावप्रवृत्ति का अभाव था.

प्रादेशिक पार्टी
केजरीवाल और उनके समर्थकों के पास ऐसे कौनसे विधायक, सकारात्मक सिद्धांत है, जो अनेकों को एकत्र रख सकेगे? भ्रष्टाचार निर्मूलन यह नकारात्मक कार्यक्रम है. वह आवश्यक है. फिर भी है तो नकारात्मक ही. अखिल भारतीय पार्टी के लिए सकारात्मक सिद्धांतों की – राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक सिद्धांतों की – नितांत आवश्यकता होती है. हॉं, प्रादेशिक पार्टी बनाना, उस तुलना में आसान है. प्रादेशिक अस्मिता, यह सकारात्मक बिंदु, उस पार्टी के रणनीतिकारों के पास होता है. आंध्र प्रदेश में एन. टी. रामाराव ने तेलगू भाषा की अस्मिता का आधार लेकर पार्टी खड़ी की. शक्तिशाली भी बनाई. उन्होंने सत्ता भी हासिल की. उनके बाद, उनके दामाद चन्द्राबाबू नायडू ने उसकी बागडोर संभाली है. लेकिन चन्द्राबाबू के बाद क्या? और कौन? यह कौन और कैसे तय करेगा? इस बारें में कुछ नियम होगे, और उनके कठोर पालन का कटाक्ष होगा, तो ही पार्टी टिकेगी. वास्तविक या तथाकथित अन्याय की पृष्ठभूमि पर प्रादेशिक भावना प्रज्वलित कर, पार्टी स्थापन की जा सकती है. तेलंगना राष्ट्र समिति एक ऐसी ही पार्टी है. तेलंगना का अलग राज्य बनने के बाद उस पार्टी का क्या होगा? चन्द्रशेखर राव समझदार होगे, तो वे अपनी समिति भंग करेगे. उन्हें सत्ता का मोह होगा तो पॉंच वर्ष सत्ता में रहने का एक मौका उन्हें मिल भी सकता है. लेकिन ऐसी पार्टी अखिल भारतीय स्तर तक पहुँच नहीं सकती, और अपने क्षेत्र में भी टिकेगी, इसकी भी गारंटी नहीं.

परिवार केन्द्रित
मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, लालूप्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल, या बाळासाहब ठाकरे की शिवसेना का भविष्य निश्‍चित है. उनकी पार्टी की मर्यादाए भी है. इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं. उनके नामाभिधान संकुचित नहीं. लेकिन व्यवहार व्यक्तिकेन्द्रित है, स्वकेन्द्रित है, ऐसा कह सकते है. मुलायम सिंह के बाद उनके पुत्र अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री क्यों बने? लोकसभा के रिक्त स्थान पर उनकी बहू डिम्पल यादव ही क्यों खड़ी होती है? कारण, वह व्यक्ति, हम उसे परिवार कहे, उस पार्टी का प्राण है. लालू प्रसाद यादव के बाद मुख्यमंत्री उनकी पत्नी राबडीदेवी ही क्यों? पार्टी में अन्य भी कोई तो होगे ही? लेकिन लालू प्रसाद को वह नहीं सूझा. २०१४ में वह पार्टी अस्तगत हुई तो आश्‍चर्य नहीं. बाळासाहब ठाकरे के बाद उद्धव ठाकरे, उनके बाद आदित्य ठाकरे यह परंपरा निश्‍चित है. यह परंपरा शिवसेना की ताकत भी है और मर्यादा भी. बाळासाहब के बाद, प्रमुखत्व प्राप्त करने वाले व्यक्ति की क्षमता पर शिवसेना का भविष्य निर्भर होगा. मुलायम सिंह चतुराई से चाल चल रहे है. संपूर्ण भारत में के मुसलमानों के मसीहा (रक्षक) बने ऐसी उनकी महत्त्वाकांक्षा है. लेकिन केवल मुसलमानों ने बल पर केन्द्र में सत्ता स्थापन करना संभव नहीं. उत्तर प्रदेश में उन्हें मुसलमानों के साथ यादव और अन्य पिछड़ों (ओबीसी) का आधार मिला. वे, वैसा ही आधार संपूर्ण भारत में हासिल करने का प्रयास करेगे. सरकारी नौकरी में पदोन्नति के लिए अनुसूचित जाती एवं जनजाति को आरक्षण देने को उनका विरोध इस कारण है कि, ऐसा आरक्षण ओबीसी को भी मिलना चाहिए. ओबीसी को भी पदोन्नति में कुछ हिस्सा मिला तो, उनका विरोध समाप्त होगा. मुस्लिम और ओबीसी के आधार पर और ताकत पर वे २०१४ का चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे है, यह स्पष्ट है.

कॉंग्रेस के लिए भी
लेकिन परिवार केन्द्रित और व्यक्ति केन्द्रित राजनीतिक पार्टीयॉं, जनतांत्रिक प्रणाली में टिकेगी नहीं. विशिष्ट प्रदेश तक ही वे मर्यादित रहेगी, यह हम पक्का ध्यान में रखे. इस दृष्टि से कॉंग्रेस पार्टी को भी विचारमंथन की आवश्यकता है. राहुल गांधी के स्तुति गान गाने से काम नहीं चलेगा. हॉं, कुछ व्यक्तियों का चल जाएगा. लेकिन विचारों, नीतियों, कार्यक्रमों मतलब पार्टी का नहीं चलेगा. वह सव्वा सौ वर्ष पुरानी पार्टी है. कुछ व्यक्तियों की श्रेष्ठ गुणसंपदा के कारण वह टिकी और बड़ी हुई है. लेकिन श्रीमति इंदिरा गांधी के जाने के बाद से उसका र्‍हास शुरू हुआ. २००९ के लोकसभा के चुनाव में उसे जो ठीक-ठाक सफलता मिली, वह अपवादात्मक माननी चाहिए. लेकिन अनेक राज्यों में, मुख्यत: पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात आदि राज्यों में उसकी क्या स्थिति है? आज जो है उससे अधिक अच्छी होने की कतई संभावना नहीं. कॉंग्रेस पार्टी का अपना संविधान है, यह अच्छी बात है. सोनिया जी और राहुल जी से हटकर भी उन्हें देखना होगा. इसका अर्थ नेतृत्व महत्त्व का नहीं, ऐसा मानने का कारण नहीं. श्रेष्ठ गुणसंपन्न नेतृत्व पार्टी की बहुत बड़ी ताकत होती है. लेकिन उस नेतृत्व की, निचले स्तर पर भी एक शृंखला होनी चाहिए और उसका अस्तित्व भी महसूस होना चाहिए.

केजरीवाल के लिए
केजरीवाल जी, इन सब बातों का गंभीरता से विचार करे. जंतरमंतर या रामलीला मैदान पर अण्णा के आंदोलन में शामिल जनता, हमारी पक्की वोटबँक है, ऐसा मानने के भ्रम में न रहे. एक मूलभूत सिद्धांत स्वीकारे. उसे प्रतिपादित करे. उसके अनुसार अपनी नीतियॉं और अपने कार्यक्रमों का प्रचार करे. उसी आधार पर पार्टी का संविधान बनाए. यह निश्‍चित करे की, पार्टी जनाधारित (mass based) रहेगी या कार्यकर्ता-आधारित (cadre based)? आपके वर्तन से लगता है कि, आपकी पसंद पार्टी जनाधारित रहने को होगी. आप कुडानकुलम् गए थे, असीम त्रिवेदी की भेट ली. यह अच्छी बात है. लेकिन राजनीतिक पार्टी की स्थापना के लिए पर्याप्त नहीं. आप नई पार्टी के बारे में लोगों का मत जानने वाले है, यह भी सही कदम है. लेकिन आपको अण्णा का आशीर्वाद भी चाहिए. इन दोनों बातों का मेल कैसे बिठाए? ऐसे प्रश्‍न ही प्रश्‍न है. इन प्रश्‍नों के समाधान पर – ऐसा समाधान जो आपको और आपके साथियों को सही लगेगा और पसंद भी होगा, आपके नई पार्टी का जन्म, अस्तित्व और भविष्य निर्भर रहेगा. आपको हमारी शुभेच्छा.

–– मा. गो. वैद्य , Nagpur

Septemnber 17, 2012 

  • email
  • facebook
  • twitter
  • google+
  • WhatsApp

Related Posts

Articles

ಮಾತಿನ ಕಠಿಣ ಕ್ರಮ, ಇನ್ನೆಷ್ಟು ದಿನ?

July 28, 2022
Articles

ದೇಶದ ಸುರಕ್ಷತೆಗಾಗಿ ಅಗ್ನಿಪಥ!

June 18, 2022
Articles

ಪಠ್ಯಪುಸ್ತಕಗಳು ಕಲಿಕೆಯ ಕೈದೀವಿಗೆಯಾಗಲಿ

Articles

ಒಂದು ಪಠ್ಯ – ಹಲವು ಪಾಠ

May 27, 2022
Articles

ಹಿಂದೂ ಧಾರ್ಮಿಕ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮಗಳಲ್ಲಿ ಅನ್ಯಮತೀಯರ ಆರ್ಥಿಕ ಬಹಿಷ್ಕಾರ : ಒಂದು ಚರ್ಚೆ

March 25, 2022
Articles

ಡಿವಿಜಿಯವರ ವ್ಯಾಸಂಗ ಗೋಷ್ಠಿ

March 17, 2022
Next Post
BMS observes Vishwakarma Jayanti at Agalpady, Kasaragod

BMS observes Vishwakarma Jayanti at Agalpady, Kasaragod

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

ಸಾಮಾಜಿಕ ಕ್ರಾಂತಿಯ ಹರಿಕಾರ ರಾಜಾ ರಾಮ್ ಮೋಹನ್ ರಾಯ್

May 22, 2022

ಒಂದು ಪಠ್ಯ – ಹಲವು ಪಾಠ

May 27, 2022
Profile of V Bhagaiah, the new Sah-Sarakaryavah of RSS

Profile of V Bhagaiah, the new Sah-Sarakaryavah of RSS

March 16, 2015
ಕವಿ ಶ್ರೇಷ್ಠ ಎಂ. ಗೋಪಾಲಕೃಷ್ಣ ಅಡಿಗರ ‘ವಿಜಯನಗರದ ನೆನಪು’ ಕವನದ ಕುರಿತು…

ಕವಿ ಗೋಪಾಲಕೃಷ್ಣ ಅಡಿಗರ ಬದುಕು ಮತ್ತು ಬರಹ : ವಿಶೇಷ ದಿನಕ್ಕೆ ವಿಶೇಷ ಲೇಖನ

February 18, 2021

ಟೀ ಮಾರಿದ್ದ ನ್ಯಾಯಾಲಯದಲ್ಲೇ ವಕೀಲೆಯಾದ ಛಲಗಾತಿ!

March 8, 2022

EDITOR'S PICK

VIDYA BHARATI-ವಿದ್ಯಾಭಾರತಿ

VIDYA BHARATI-ವಿದ್ಯಾಭಾರತಿ

September 17, 2010
#NationalSportsDay and some quotes by successful sportspersons of Bharat

#NationalSportsDay and some quotes by successful sportspersons of Bharat

August 29, 2019
VHP Chief Togadia inaugurates GOW UTSAV in Karnavati

VHP Chief Togadia inaugurates GOW UTSAV in Karnavati

November 27, 2013
RSS expresses deep condolences on demise of Mysore Maharaj Srikantadatta Narasimharaja Wadiyar

RSS expresses deep condolences on demise of Mysore Maharaj Srikantadatta Narasimharaja Wadiyar

December 10, 2013

Samvada ಸಂವಾದ :

Samvada is a media center where we discuss various topics like Health, Politics, Education, Science, History, Current affairs and so on.

Categories

Recent Posts

  • ಬೆಂಗಳೂರು‌ ಮಳೆ‌ ಅವಾಂತರ – ಕ್ಷಣಿಕ ಪರಿಹಾರಕ್ಕಿಂತ ಶಾಶ್ವತ ಪರಿಹಾರ ದೊರೆಯಲಿ!
  • RSS Sarkaryawah Shri Dattareya Hosabale hoisted the National Flag at Chennai
  • ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯೋತ್ಸವದ ಅಮೃತ ಮಹೋತ್ಸವ – ಸಾಮರಸ್ಯದ ಸಮಾಜದಿಂದ ಮಾತ್ರವೇ ದೇಶ ಬಲಿಷ್ಠವಾಗಲು ಸಾಧ್ಯ! – ದತ್ತಾತ್ರೇಯ ಹೊಸಬಾಳೆ
  • ಬಿಸ್ಮಿಲ್, ರಿಝಾಲ್ ಮತ್ತು ಬೇಂದ್ರೆ
  • About Us
  • Contact Us
  • Editorial Team
  • Errors/Corrections
  • ETHICS POLICY
  • Events
  • Fact-checking Policy
  • Home
  • Live
  • Ownership & Funding
  • Pungava Archives
  • Subscribe
  • Videos
  • Videos – test

© samvada.org - Developed By eazycoders.com

No Result
View All Result
  • Samvada
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us

© samvada.org - Developed By eazycoders.com

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In