• Samvada
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
Tuesday, March 21, 2023
Vishwa Samvada Kendra
No Result
View All Result
  • Login
  • Samvada

    ಪ್ರಬೋದಿನೀ ಗುರುಕುಲಕ್ಕೆ NIOS ಅಧಿಕಾರಿಗಳ ಭೇಟಿ

    ಮಾರ್ಚ್ ೧೧ರಿಂದ ೧೩ರವರೆಗೆ ಗುಜರಾತಿನಲ್ಲಿ ಅಖಿಲ ಭಾರತ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಸಭಾ

    Evacuation of Indians stranded in Ukraine by Government of India

    Ukraine Russia Crisis : India abstained from UNSC resolution

    Trending Tags

    • Commentary
    • Featured
    • Event
    • Editorial
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
  • Samvada

    ಪ್ರಬೋದಿನೀ ಗುರುಕುಲಕ್ಕೆ NIOS ಅಧಿಕಾರಿಗಳ ಭೇಟಿ

    ಮಾರ್ಚ್ ೧೧ರಿಂದ ೧೩ರವರೆಗೆ ಗುಜರಾತಿನಲ್ಲಿ ಅಖಿಲ ಭಾರತ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಸಭಾ

    Evacuation of Indians stranded in Ukraine by Government of India

    Ukraine Russia Crisis : India abstained from UNSC resolution

    Trending Tags

    • Commentary
    • Featured
    • Event
    • Editorial
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
No Result
View All Result
Samvada
Home Articles

RSS Veteran MG Vaidya blog article on BJP issue: भाजपा की अ-स्वस्थता: मा. गो. वैद्य

Vishwa Samvada Kendra by Vishwa Samvada Kendra
November 12, 2012
in Articles
247
0
RSS Veteran MG Vaidya blog article on BJP issue: भाजपा की अ-स्वस्थता: मा. गो. वैद्य

M-G-Vaidya, RSS Ideologue

491
SHARES
1.4k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

READ ALSO

ಮಾತಿನ ಕಠಿಣ ಕ್ರಮ, ಇನ್ನೆಷ್ಟು ದಿನ?

ದೇಶದ ಸುರಕ್ಷತೆಗಾಗಿ ಅಗ್ನಿಪಥ!

 (The opinions expressed here in this article are the personal opinions of Sri MG Vaidya. It is not the official opinion of RSS.)

भाजपा की अ-स्वस्थता

M-G-Vaidya, RSS Ideologue
 भाजपा में अ-स्वस्थता है. भाजपा की आलोचना करने के लिए या उस पार्टी की निंदा करने के लिए मैं यह नहीं कहता. भाजपा का स्वास्थ्य ठीक नहीं दिखता, ऐसा मुझे लगता है. उस पार्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहे, उसकी एकजूट बनी रहे, उसके कार्यकर्ता और मुख्यत: नेता, अपनी ही पार्टी को कमजोर न बनाए, इस इच्छा से मैं यह कह रहा हूँ; और ऐसी इच्छा रखने वाला मैं अकेला ही नहीं. भाजपा के बारे में सहानुभूति रखने वाले, २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा अग्रेसरत्व प्राप्त करें ऐसी इच्छा रखने वाले असंख्य लोगों को ऐसा लगता है. विशेष यह कि ऐसी इच्छा रखने वालों में जो भाजपा में सक्रिय है, छोटे-बड़े पदों पर हैं, उनकी भी ऐसी ही इच्छा है.

अकालिक और अप्रस्तुत
इस कारण, राम जेठमलानी ने जो सार्वजनिक वक्तव्य किया है, उस बारे में खेद होता है. नीतीन गडकरी त्यागपत्र दे, ऐसी भाजपा के किसी कार्यकर्ता या सांसद की भावना हो सकती है. ऐसी भावना होने में अनुचित कुछ भी नहीं. लेकिन यह मुद्दा वे पार्टी के स्तर पर उठाना चाहिए. वैसे भी गडकरी की अध्यक्ष पद की कालावधि दिसंबर में मतलब महिना-डेढ माह बाद समाप्त हो रही है. पार्टी ने, अपने संविधान में संशोधन कर, लगातार दो बार एक ही व्यक्ति उस पद पर रह सकती है, ऐसा निश्‍चित किया है. इस कारण, गडकरी पुन: तीन वर्ष उस पद पर रह सकते है. लेकिन यह हुई संभावना. उन्हेंे उस पद पर आने देना या नहीं, यह पार्टी तय करे. जेठमलानी ने जिस समय कहा है कि गडकरी तुरंत त्यागपत्र दे,उसी समय, मोदी को प्रधानमंत्री बनाए, ऐसा भी उन्होंने बताया है. उन्हें यह बताने का भी अधिकार है. लेकिन २०१४ में प्रधानमंत्री कौन हो, इसकी चर्चा २०१२ में करना अकालिक है, अप्रस्तुत है, ऐसा मैंने इसी स्तंभ में लिखा है.
 
एक ही व्यक्ति के एक ही वक्तव्य में, गडकरी जाए और मोदी को प्रधानमंत्री करें, ऐसा उल्लेख आने के कारण, गडकरी विरोधी षड्यंत्र का केन्द्र गुजरात में है, ऐसा संदेह मन में आना स्वाभाविक है और गुजरात कहने के बाद, फिर संदेह की उंगली नरेन्द्र मोदी की ओर ही मुडेगी. प्रधानमंत्री बने ऐसी ऐसी इच्छा मोदी ने रखने में कुछ भी अनुचित नहीं. राजनीति के मुख्य प्रवाह में रहने वाले व्यक्ति की उच्च पद पर जाने की महत्त्वाकांक्षा होना अस्वाभाविक नहीं. समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचारों से स्पष्ट होता है कि, लालकृष्ण अडवाणी ने स्वयं को इस स्पर्धा से दूर रखा है. नीतीन गडकरी ने भी पहले ही कहा है कि, मैं इस स्पर्धा में नहीं हूँ. लेकिन इस संदर्भ में नरेन्द्र मोदी के बारे में प्रसार माध्यमों में बहुत समाचार चलते रहते हैं. नरेन्द्र मोदी ने इन समाचारों का खंडन किया है, ऐसा कहीं दिखा नहीं. इससे मोदी को प्रधानमंत्री बनने में रस है, उनकी वैसी आकांक्षा है, ऐसा अर्थ कोई निकालता है तो उसे दोष नहीं दे सकते.
अकालिक चर्चा
लेकिन, निश्‍चित कौन प्रधानमंत्री बनेगा, यह तय करने का समय अभी आया नहीं. वस्तुत: चुनकर आए सांसद अपना नेता चुनते है. जिस पार्टी या पार्टी ने समर्थन दिये गठबंधन का लोकसभा में बहुमत होगा,उसके नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री पद की शपथ देंगे. यह सच है कि, कुछ पार्टिंयॉं चुनाव के पहले ही अपना प्र्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार निश्‍चित कर उसके नेतृत्व में चुनाव लड़ती है. भाजपा ने भी इसी प्रकार से चुनाव लड़े थें. उस समय, पार्टी ने अटलबिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार निश्‍चित किया था. १९९६, १९९८ और १९९९ के तीनों लोकसभा के चुनाव भाजपा ने अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में लड़े थे. लेकिन यह सौभाग्य नरेन्द्र मोदी को भी प्राप्त होगा, ऐसे संकेत आज दिखाई नहीं देते. मेरी अल्पमतिनुसार, २०१३ के विधानसभाओं के चुनाव हुए बिना, भाजपा अपनी रणनीति निश्‍चित नहीं करेगी. फिर उसे प्रकट करना तो दूर की बात है. २०१३ में जिन राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव हो रहे है, उनमें से अधिकांश राज्यों में भाजपा का अच्छाप्रभाव है. दिल्ली,राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, कर्नाटक ये वेे राज्य है. इनमें से तीन राज्यों में भाजपा की सरकारें है. दिल्ली और राजस्थान में भाजपा की सरकारें नहीं है, लेकिन इन दोनों ही स्थानों पर भाजपा की सरकारें आने जैसी स्थिति है. हाल ही संपन्न हुई दिल्ली राज्य में की महानगर पालिका के चुनाव में भाजपा ने कॉंग्रेस को पराभूत कर वहॉं की महापालिकाएँ अपने कब्जे में ली. भाजपा की २०१४ के लोकसभा के चुनाव की रणनीति २०१३ के विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आने के बाद ही निश्‍चित होने की संभावना अधिक है.
उचित कदम
राम जेठमलानी के वक्तव्य के बाद उनके पुत्र महेश जेठमलानी ने पार्टी में के अपने पद से त्यागपत्र दिया है. वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य थे. अपने त्यागपत्र में वे कहते है कि, ‘‘भ्रष्टाचार के आरोपों का कलंक लगे अध्यक्ष के नीचे मैं काम नहीं कर सकूंगा. वह मुझे बौद्धिक और नैतिक इन दोनों दृष्टि से अनुचित लगता है.’’ महेश जेठमलानी ने जो मार्ग अपनाया वह मुझे योग्य लगता है. राम जेठमलानी ने भी उसी मार्ग का अनुसरण कर अपनी राज्यसभा की सदस्यता त्यागना उचित सिद्ध होगा. राम जेठमलानी ने कहा है कि, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा का मत भी मेरे ही मत के समान है. उन्होंने भी पार्टी के पद छोड़ने का निर्णय लेना योग्य होगा. जिस पार्टी के सर्वोच्च पद पर‘कलंकित’ व्यक्ति होगी, उस पार्टी में कोई सयाना मनुष्य संतुष्ट कैसे रहेगा?
पार्टी का समर्थन
एक व्यक्ति ने और प्रसारमाध्यमों की एक टीम ने मुझे प्रश्‍न किया कि, राम जेठमलानी का वक्तव्य कितनी गंभीरता से ले. मैंने कहा, बहुत गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं. उनके वक्तव्य की उपेक्षा करना ही योग्य होगा. विचार करें, भाजपा कोबढाने और उसके शक्तिसंपादन में जेठमलानी का कितना योगदान है? इसके अलावा, अनेक विषयों पर के उनके मत पार्टी के मतों से मेल नहीं खाते. जैसे कश्मीर प्रश्‍न के बारे में या प्रभु रामचन्द्र के बारे में. श्रीराम इतने बुरे होते तो जेठमलानी के माता-पिता ने उनका नाम ‘राम’ क्यों रखा होता? खैर, वह एक स्वतंत्र विषय है. उसकी यहॉं चर्चा अप्रस्तुत है. हॉं, इतना सच है कि, जेठमलानी पिता-पुत्र के वक्तव्यों ने खलबली मचा दी. गडकरी के सौभाग्य से, पार्टी उनके समर्थन में खड़ी रही.
भाजपा के वरिष्ठ स्तर के अंतरंग नेताओं (कोअर ग्रुप) की दिल्ली में एक बैठक हुई. उस बैठक ने श्री गडकरी के नेतृत्व पर पूर्ण विश्‍वास व्यक्त किया. उस बैठक में जेठमलानी पिता-पुत्र के रहने की संभावना नहीं. लेकिन यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह अपेक्षित होंगे. वे उपस्थित थे या नहीं, इस बारे में पता नहीं चला. अडवाणी अनुपस्थित थे. औचित्य का विचार करे तो, उन्होंने उपस्थित रहना आवश्यक था,ऐसा मुझे लगता है. इस बैठक में भी सब ने अपने मत रखे होंगे. लेकिन जो निर्णय हुआ, फिर वह बहुमत से हुआ हो, अथवा एकमत से, वह सब का ही निर्णय साबित होता है. इस बैठक की विशेषता यह है कि,गडकरी उस बैठक में नहीं थे. उन्होंने योग्य निर्णय लिया ऐसा ही कोई भी कहेगा. इस कारण, उस बैठक में खुलकर चर्चा हुई होगी.
प्रश्‍न कायम
जेठमलानी की मॉंग के अनुसार गडकरी त्वरित त्यागपत्र नहीं देंगे, यह अब स्पष्ट हो चुका है. लेकिन वे पुन: दूसरी बार अध्यक्ष बनेंगे या नहीं, यह प्रश्‍न कायम है. उस संबंध में पार्टी ही निर्णय लेगी. उनके विरुद्ध लगे आरोपों की सरकार द्वारा जॉंच की जा रही है. एक जॉंच, कंपनी विभाग कीओर से तो दूसरी आयकर विभाग की ओर से हो रही है. गडकरी हिंमत से इस जॉंच का सामना कर रहे हैं. रॉबर्ट वढेरा के समान उन्होंने पीठ नहीं दिखाई. इस जॉंच केक्या निष्कर्ष आते है, इस पर उनकी अध्यक्ष पद की दूसरी पारी निर्भर रह सकती है. आगामी डेढ माह में इस जॉंच समिति की रिपोर्ट आएगी या नहीं, यह बता नहीं सकते. चेन्नई से प्रकाशित होने वाले ‘हिंदू’ दैनिक के संवाद्दाता ने आयकर विभाग के प्राथमिक रिपोर्ट की उनके समाचारपत्र में प्रकाशित हुए समाचार की प्रति मुझे दी. इसका अर्थ आयकर विभाग ने समाचारपत्रों को समाचार देना शुरु किया है, ऐसा अंदाज लगाया जा सकता है. मेरे मत से यह अयोग्य है. उस समाचार में ऐसा कहा है कि, गडकरी ने स्थापन की पूर्ति कंपनी में जिन कंपनियों ने पैसा लगाया है, उनके व्यवहार में कुछ अनियमितता है.
इस रिपोर्ट को सही माना, तो भी वह उन कंपनियों का प्रश्‍न है. मेरा अंदाज है कि, गडकरी को पुन: अध्यक्ष पद न मिले, इसलिए विरोधी पार्टिंयों के लोग जिस प्रकार सक्रिय है, वैसे ही भाजपा में के भी कुछ लोग सहभागी है. विरोधी पार्टिंयॉं और मुख्यत: कॉंग्रेस को, गडकरी भ्रष्टाचारी है, यह दिखाने में इसलिए दिलचस्पी है कि, ऐसा कर उन्हें भाजपा भी उनकी ही पार्टी के समान भ्रष्टाचार में सनी पार्टी है,यह लोगों के गले उतारना है. जिससे २०१४ के लोकसभा के चुनाव में, भाजपा की ओर से कॉंग्रेस के भ्रष्टाचारी चरित्र की जैसी चिरफाड की जाने की संभावना है, उसकी हवा निकल जाय. पार्टी के अंदर जो विरोध है, उसका केन्द्र, ऊपर उल्लेख कियेनुसार गुजरात में है. नरेन्द्र मोदी को लगता होगा कि गडकरी पार्टी अध्यक्ष होगे, तो उनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षा पूरी नहीं होगी. वे यह भी दिखाना चाहते होगे कि, संजय जोशी के मामले में जैसा वे गडकरी को झुका सके, उसी प्रकार इस बारे में भी उन्हें हतप्रभ कर सकते है. अर्थात् यह सब अंदाज है. वह गलतफहमी या पूर्वग्रह से भी उत्पन्न हुए हो सकते है. लेकिन यह संदेह भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता के मन में है, यह सच है. हमारी इच्छा इतनी ही है कि, व्यक्ति महत्त्व की नहीं, होनी भी नहीं चाहिए, लेकिन महत्त्व की होनी चाहिए हमारी संस्था, हमारा संगठन, हमारी पार्टी. भाजपा एक सियासी पार्टी है. वह एकजूट है, वह एकरस है, उसके नेताओं के बीच परस्पर सद्भाव है, उनके बीच मत्सर नहीं, ऐसा चित्र निर्माण होना चाहिए, ऐसी भाजपा के असंख्य कार्यकर्ताओं की और सहानुभूति धारकों की भी अपेक्षा है. इसमें ही पार्टी की भलाई है; और उसके वर्धिष्णुता का भरोसा भी है. क्या भाजपा के नेता यह अपेक्षा पूरी करेंगे? भाजपा का आरोग्य ठीक है, ऐसा वे दर्शाएंगे? आनेवाला समय ही इन प्रश्‍नों के सही उत्तर दे सकेगा.
– मा. गो. वैद्य
http://hindibhashya.blogspot.in/

ORIGINAL ARTICLE IN MARATHI

भाजपाची अ-स्वस्थता

रविवारचे भाष्य दि. ११ नोव्हेंबर २०१२ करिता 
MG Vaidya, RSS Ideologue
भाजपात अस्वस्थता आहे. भाजपावर टीका करण्यासाठी किंवा त्या पार्टीची निंदा करण्याकरिता मी हे म्हणत नाही. भाजपाचे स्वास्थ्य चांगले दिसत नाही, असे मला जाणवते. त्या पार्टीचे स्वास्थ्य चांगले रहावे, तीत एकजूट रहावी, तिच्या कार्यकर्त्यांनी आणि विशेषत: नेत्यांनी, आपल्याच पक्षाला कमजोर करू नये, या इच्छेने मी हे म्हणत आहे; आणि असे वाटणार्‍यांमध्ये मी एकटाच नाही. भाजपाविषयी सहानुभूती असणार्‍या, २०१४ च्या लोकसभेच्या निवडणुकीत भाजपाने अग्रेसरत्व प्राप्त करावे अशी इच्छा असणार्‍या असंख्य लोकांना असे वाटते. विशेष म्हणजे असे वाटणार्‍यांमध्ये जे भाजपामध्ये सक्रिय आहेत,लहानमोठ्या पदांवर आहेत, त्यांनाही असे वाटते.
अकालिक व अप्रस्तुत
त्यामुळे, त्यांना राम जेठमलानी यांनी जे वक्तव्य जाहीर रीतीने केले, त्या विषयी खेद वाटतो. नीतीन गडकरींनी राजीनामा द्यावा, असे भाजपाच्या एखाद्या कार्यकर्त्याला किंवा खासदाराला वाटू शकते. असे वाटण्यात काही गैर नाही. पण हा मुद्दा त्यांनी पक्षपातळीवर काढायला हवा. तशीही गडकरी यांची अध्यक्षपदाची मुदत डिसेंबरात म्हणजे महिना दीडमहिन्यांनी संपते. पक्षाने, आपल्या घटनेत बदल करून, लागोपाठ दोन वेळा एकच व्यक्ती त्या पदावर राहू शकते,असे ठरविले आहे. त्यामुळे, गडकरी पुन: तीन वर्षांसाठी अध्यक्ष राहू शकतात. पण ही झाली शक्यता. त्यांना त्या पदावर येऊ द्यावयाचे किंवा नाही, हे पार्टीने ठरवावे. जेठमलानी यांनी गडकरींनी लगेच राजीनामा द्यावा असे ज्यावेळी म्हटले, त्याच वेळी, नरेंद्र मोदी यांना प्रधान मंत्री करावे, असेही सांगितले. हेही सांगण्याचा त्यांना अधिकार आहे. पण २०१४ मध्ये प्रधानमंत्री कोण असावा, याची चर्चा २०१२ मध्ये करणे अकालिक आहे, अप्रस्तुत आहे, असे मी यापूर्वी या स्तंभात लिहिले आहे.
संशयाची सुई
एकाच व्यक्तीच्या एकाच वक्तव्यात, गडकरींनी जावे आणि मोदींना प्रधानमंत्री करावे, असे उल्लेख आल्यामुळे, गडकरीविरोधी कारस्थानाचे केंद्र गुजरातमध्ये आहे, असा संशय कुणाच्याही मनात येणे स्वाभाविक आहे आणि गुजरात म्हटले की, मग नरेंद्र मोदी यांच्याकडेच संशयाच्या सुईचे टोक जाणार. मोदींना प्रधान मंत्री व्हावेसे वाटणे, यातही काही गैर नाही. राजकारणाच्या मुख्य प्रवाहात असणार्‍या व्यक्तींच्या ठायी उच्च पदावर जाण्याची महत्त्वाकांक्षा असणे अस्वाभाविक नाही. कालच्या वृत्तपत्रांमध्ये प्रकाशित झालेल्या बातमीवरून लालकृष्ण अडवाणींनी स्वत:ला या स्पर्धेपासून दूर ठेवले आहे, असे स्पष्ट होते. नीतीन गडकरींनीही आपण या पदाच्या स्पर्धेत नाही, असे पूर्वीच सांगितले आहे. या संदर्भात नरेंद्र मोदीसंबंधीच्या बातम्या मात्र प्रसारमाध्यमांमध्ये खूप झळकत असतात. या बातम्यांचे मोदींनी खंडन केल्याचे कुठे दिसले नाही. त्यावरून मोदींना प्रधान मंत्री होण्यात रस आहे, तशी त्यांची आकांक्षा आहे, असा कुणी अर्थ काढला, तर त्याला दोष देता येणार नाही.
अकालिक चर्चा
परंतु, नेमकी कोण व्यक्ती प्रधान मंत्री होईल, हे ठरविण्याची वेळ अजून आलेली नाही. वस्तुत: निवडून आलेले खासदार आपला नेता निवडतात. ज्या पक्षाकडे किंवा पक्षाने पुरस्कृत केलेल्या ज्या आघाडीकडे लोकसभेत बहुमत असेल, त्याला राष्ट्रपती प्रधान मंत्रिपदाची शपथ देतील. हे खरे आहे की, काही पक्ष निवडणुकीपूर्वीच आपला प्रधान मंत्रिपदाचा उमेदवार ठरवीत असतात व त्याच्या नेतृत्वात निवडणूक लढवीत असतात. भाजपानेही याचप्रकारे निवडणुकी लढविल्या होत्या. त्यावेळी, पक्षाने अटलबिहारी वाजपेयी यांना प्रधान मंत्रिपदाचे उमेदवार ठरविले होते. १९९६, १९९८ आणि १९९९ मधील तिन्ही लोकसभेच्या निवडणुकी भाजपाने अटलबिहारी यांच्या नेतृत्वात लढविल्या होत्या. पण हे भाग्य नरेंद्र मोदी यांच्या वाट्याला येईल, अशी आज तरी चिन्हे दिसत नाहीत. माझ्या अल्पमतीप्रमाणे, २०१३ मधील विधानसभांच्या निवडणुका झाल्याशिवाय, भाजपा आपली रणनीती ठरविणार नाही. मग ती प्रकट करण्याची गोष्टच दूर. २०१३ मध्ये ज्या राज्यांच्या विधानसभांच्या निवडणुका आहेत, त्यांत भाजपाचा प्रभाव असलेली बहुतांश राज्ये आहेत. दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगड, कर्नाटक ही ती राज्ये होत. यापैकी तीन राज्यांमध्ये भाजपाची सरकारे आहेत. दिल्ली व राजस्थानमध्ये भाजपाची सरकारे नाहीत, कॉंग्रेसची सरकारे आहेत, पण या दोन्ही ठिकाणी भाजपाची सरकारे येण्यासारखी परिस्थिती आहे. अलीकडेच पार पडलेल्या दिल्ली राज्यातील महानगर पालिकांच्या निवडणुकीत भाजपाने कॉंग्रेसला पराभूत करून तेथील महापालिकांवर आपला अधिकार स्थापन केला आहे. भाजपाची २०१४ सालच्या लोकसभेच्या निवडणुकीची रणनीती २०१३ मधील विधानसभांच्या निवडणुकींच्या निकालानंतरच ठरण्याची अधिक शक्यता आहे.
उचित पाऊल
राम जेठमलानी यांच्या वक्तव्यानंतर त्यांचे पुत्र महेश जेठमलानी यांनी पक्षातील आपल्या पदाचा राजीनामा दिला. ते भाजपाच्या राष्ट्रीय कार्यकारी समितीचे सदस्य होते. आपल्या राजीनाम्याच्या पत्रात ते म्हणाले की, ‘‘भ्रष्टाचाराच्या आरोपाचा कलंक लागलेल्या अध्यक्षाच्या हाताखाली मी काम करू शकणार नाही. ते मला बौद्धिक आणि नैतिक या दोन्ही दृष्टींनी अनुचित वाटते.’’ महेश जेठमलानींनी जो मार्ग स्वीकारला तो मला योग्य वाटतो. राम जेठमलानी यांनीही त्याच मार्गाचे अनुसरण करून आपली राज्यसभेची सदस्यता त्यागणे उचित ठरेल. राम जेठमलानी म्हणाले की, यशवंत सिन्हा, जसवंतसिंग आणि शत्रुघ्न सिन्हा यांचेही मत त्यांच्या मतासारखेच आहे. त्यांनीही पक्षातील पद सोडण्याचा निर्णय घेणे योग्य. ज्या पक्षाच्या सर्वोच्च पदी ‘कलंकित’ व्यक्ती असेल, त्या पक्षात कोणता शहाणा माणूस संतुष्ट राहील?
पक्ष पाठीशी
एका व्यक्तीने आणि प्रसारमाध्यमांच्या एका चमूने मला प्रश्‍न केला की, राम जेठमलानी यांच्या वक्तव्याला किती गंभीरपणे घ्यावे. मी म्हणालो, फारशा गांभीर्याने घेण्याची आवश्यकता नाही. त्यांच्या वक्तव्याची उपेक्षा करणे हेच योग्य. आणि खरेच विचार केला तर भाजपाच्या उभारणीत आणि शक्तिसंपादनात जेठमलानींचे योगदान तर कितीसे आहे? शिवाय, अनेक विषयांवरील त्यांची मते पक्षाच्या मताशी जुळणारी नाहीत. जसे काश्मीरच्या प्रश्‍नासंबंधी किंवा प्रभू रामचंद्रांसंबंधी. श्रीराम एवढे वाईट असते तर जेठमलानींच्या मातापित्यांनी त्यांचे नाव ‘राम’ का ठेवले असते? पण तो एक स्वतंत्र विषय आहे. त्याची चर्चा येथे अप्रस्तुत आहे. एवढे मात्र खरे की, जेठमलानी पितापुत्रांच्या वक्तव्यांनी खळबळ माजवून दिली. गडकरींच्या सुदैवाने, पक्ष त्यांच्या पाठीशी उभा राहिला.
भाजपाच्या वरिष्ठ पातळीवरील अंतरंग नेत्यांची (कोअर ग्रुप) दिल्लीत एक बैठक झाली. त्या बैठकीने श्री गडकरी यांच्या नेतृत्वावर पूर्ण विश्‍वास व्यक्त केला. त्या बैठकीत जेठमलानी पितापुत्र असण्याची शक्यता नाही. पण यशवंत सिन्हा व जसवंतसिंग हे अपेक्षित असावेत. ते उपस्थित होते वा नाही, हे कळले नाही. अडवाणी मात्र अनुपस्थित होते. औचित्याचा विचार करता, त्यांनी उपस्थित राहणे आवश्यक होते, असे मला वाटते. या बैठकीतही सर्वांनी आपापली मते मांडली असतील. पण जो निर्णय झाला, तो मग बहुमताने झालेला असो, अथवा एकमताने,तो सर्वांचाच निर्णय ठरतो. या बैठकीचे वैशिष्ट्य हे की, गडकरी त्या बैठकीत नव्हते. त्यांनी योग्य निर्णय घेतला असेच कुणीही म्हणेल. त्यामुळे, त्या बैठकीत मोकळेपणाने चर्चा झाली असेल.
प्रश्‍न कायम
जेठमलानींनी मागितल्याप्रमाणे गडकरी ताबडतोब राजीनामा देणार नाहीत, हे आता स्पष्ट झाले आहे. पण ते पुन: दुसर्‍यांदा अध्यक्ष बनतील किंवा नाही, हा प्रश्‍न कायम आहे. त्या संबंधीचा निर्णय पक्षच घेईल. त्यांच्यावर झालेल्या आरोपांची सरकारतर्फे चौकशी केली जात आहे. एक चौकशी, कंपनी खात्याकडून तर दुसरी आयकर खात्याकडून होत आहे. या चौकशीला गडकरी हिमतीने सामोरे गेले आहेत. रॉबर्ट वढेरासारखा पळपुटेपणा त्यांनी दाखविला नाही. या चौकशीचे कोणते निष्कर्ष येतात, यावर त्यांची अध्यक्षपदाची दुसरी खेप अवलंबून राहू शकते. येत्या दीड महिन्यात या चौकशी समितीचा अहवाल येईल वा नाही, हे सांगता येणार नाही. काल मला, चेन्नईवरून प्रकाशित होणार्‍या ‘हिंदू’ या दैनिकाच्या वार्ताहराने आयकर खात्याच्या प्राथमिक अहवालाची त्याच्या वृत्तपत्रात प्रकाशित झालेल्या बातमीची प्रत दिली. याचा अर्थ आयकर खात्याने वृत्तपत्रांना बातमी पुरविणे सुरू केले आहे, असा करता येऊ शकतो. माझ्या मते हे अयोग्य आहे. त्या बातमीत असे म्हटले आहे की, गडकरींनी स्थापन केलेल्या पूर्ती कंपनीत ज्या कंपन्यांनी पैसा गुंतवला, त्यांच्या व्यवहारात काही अनियमितता आहे.
हा अहवाल खरा मानला, तरी तो त्या कंपन्यांचा प्रश्‍न आहे. माझा अंदाज असा आहे की,गडकरींना पुन: अध्यक्षपद लाभू नये, यासाठी विरोधी पक्षातील मंडळी जशी सक्रिय आहे,तशीच भाजपामधील काही मंडळीही सहभागी आहेत. विरोधी पक्षांना आणि विशेषत: कॉंग्रेसला, गडकरी भ्रष्टाचारी आहेत, हे दाखविण्यात रस या कारणासाठी आहे की, त्या द्वारे त्यांना भाजपाही त्यांच्या पक्षासारखाच भ्रष्टाचारात बुडलेला पक्ष आहे, हे जनतेच्या मनावर ठसावे. आम्हीच केवळ भ्रष्ट नाही, तुम्हीही भ्रष्टच आहात, हे त्यांना जनमानसावर बिंबवायचे आहे. जेणेकरून २०१४ च्या लोकसभेच्या निवडणुकीत, भाजपातर्फे कॉंग्रेसच्या भ्रष्टाचारी चारित्र्याची जशी चिरफाड केली जाण्याची शक्यता आहे, त्या प्रचाराच्या शिडातील हवा निघून जावी. पक्षांतर्गत जो विरोध आहे, त्याचे केंद्र, वर उल्लेखिल्याप्रमाणे गुजरातेत आहे. नरेंद्र मोदींना हे वाटत असावे की गडकरी पक्षाध्यक्ष असतील, तर आपली प्रधान मंत्री बनण्याची महत्त्वाकांक्षा पूर्ण होऊ शकणार नाही. त्यांना हेही दाखवायचे असू शकते की, संजय जोशी प्रकरणात जसे आपण गडकरींना वाकवू शकलो, त्याचप्रमाणे याही बाबतीत आपण त्यांना हतप्रभ करू शकतो. त्यासाठीच ते जेठमलानींचा उपयोग करून घेत असतील. अर्थात हे सारे अंदाज आहेत. ते गैरसमजातून किंवा पूर्वग्रहातूनही उत्पन्न झालेले असू शकतात. पण हे संशय भाजपाच्या तळागाळातील कार्यकर्त्यांच्या मनात आहेत, हे खरे आहे. आमची इच्छा एवढीच आहे की, व्यक्ती तेवढी महत्त्वाची नाही, नसावीही; पण महत्त्वाची असावी आपली संस्था,आपली संघटना, आपला पक्ष. भाजपा हा राजकीय पक्ष आहे. तो एकजूट आहे, तो एकरस आहे,त्याच्या नेत्यांमध्ये परस्पर सद्भाव आहे, त्यांच्यात मत्सर नाही, असा ठसा उमटावा, अशी असंख्य भाजपाच्या कार्यकर्त्यांची आणि सहानुभूतिदारांचीही अपेक्षा आहे. यातच पक्षाचे भले आहे; आणि त्याच्या वर्धिष्णुतेची ग्वाही आहे. भाजपाचे नेते ही अपेक्षा पूर्ण करतील काय?भाजपाचे आरोग्य ठीक आहे, असे ते दर्शवतील काय? पुढील काळच या प्रश्‍नाचे खरे उत्तर देऊ शकेल.
–मा. गो. वैद्य, नागपूर
http://mgvaidya.blogspot.in/
  • email
  • facebook
  • twitter
  • google+
  • WhatsApp

Related Posts

Articles

ಮಾತಿನ ಕಠಿಣ ಕ್ರಮ, ಇನ್ನೆಷ್ಟು ದಿನ?

July 28, 2022
Articles

ದೇಶದ ಸುರಕ್ಷತೆಗಾಗಿ ಅಗ್ನಿಪಥ!

June 18, 2022
Articles

ಪಠ್ಯಪುಸ್ತಕಗಳು ಕಲಿಕೆಯ ಕೈದೀವಿಗೆಯಾಗಲಿ

Articles

ಒಂದು ಪಠ್ಯ – ಹಲವು ಪಾಠ

May 27, 2022
Articles

ಹಿಂದೂ ಧಾರ್ಮಿಕ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮಗಳಲ್ಲಿ ಅನ್ಯಮತೀಯರ ಆರ್ಥಿಕ ಬಹಿಷ್ಕಾರ : ಒಂದು ಚರ್ಚೆ

March 25, 2022
Articles

ಡಿವಿಜಿಯವರ ವ್ಯಾಸಂಗ ಗೋಷ್ಠಿ

March 17, 2022
Next Post
RSS distances from Blog article, even MG Vaidya says views are My Personal, not of RSS

RSS distances from Blog article, even MG Vaidya says views are My Personal, not of RSS

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

ಸಾಮಾಜಿಕ ಕ್ರಾಂತಿಯ ಹರಿಕಾರ ರಾಜಾ ರಾಮ್ ಮೋಹನ್ ರಾಯ್

May 22, 2022

ಒಂದು ಪಠ್ಯ – ಹಲವು ಪಾಠ

May 27, 2022
Profile of V Bhagaiah, the new Sah-Sarakaryavah of RSS

Profile of V Bhagaiah, the new Sah-Sarakaryavah of RSS

March 16, 2015
Shri Guruji Golwalkar – Biography By H. V. Sheshadri

Shri Guruji Golwalkar – Biography By H. V. Sheshadri

April 18, 2011
ಕವಿ ಶ್ರೇಷ್ಠ ಎಂ. ಗೋಪಾಲಕೃಷ್ಣ ಅಡಿಗರ ‘ವಿಜಯನಗರದ ನೆನಪು’ ಕವನದ ಕುರಿತು…

ಕವಿ ಗೋಪಾಲಕೃಷ್ಣ ಅಡಿಗರ ಬದುಕು ಮತ್ತು ಬರಹ : ವಿಶೇಷ ದಿನಕ್ಕೆ ವಿಶೇಷ ಲೇಖನ

February 18, 2021

EDITOR'S PICK

ಭ್ರಷ್ಟಾಚಾರದ ವಿರುದ್ಧ ಎಬಿವಿಪಿ ರಾಜ್ಯವ್ಯಾಪಿ ಪ್ರತಿಭಟನೆ

ಭ್ರಷ್ಟಾಚಾರದ ವಿರುದ್ಧ ಎಬಿವಿಪಿ ರಾಜ್ಯವ್ಯಾಪಿ ಪ್ರತಿಭಟನೆ

February 10, 2011
ಆರೆಸ್ಸೆಸ್ ಜೊತೆ ಕೆಲಸ ಮಾಡಲು ಯುವಜನತೆ ಮುಂದೆ ಬರುತ್ತಿದೆ  – ಡಾ. ಮನಮೋಹನ್ ವೈದ್ಯ

ಆರೆಸ್ಸೆಸ್ ಜೊತೆ ಕೆಲಸ ಮಾಡಲು ಯುವಜನತೆ ಮುಂದೆ ಬರುತ್ತಿದೆ – ಡಾ. ಮನಮೋಹನ್ ವೈದ್ಯ

March 19, 2021
Veteran RSS pracharak who served with Hindu Seva Pratishthana no more

Veteran RSS pracharak who served with Hindu Seva Pratishthana no more

May 1, 2019
स्वराज्य को ‘सुराज्य’ में परिवर्तित करना समाज की मौजूदा पीढ़ी के समक्ष कठिन चुनौती : नंदकुमारजी

स्वराज्य को ‘सुराज्य’ में परिवर्तित करना समाज की मौजूदा पीढ़ी के समक्ष कठिन चुनौती : नंदकुमारजी

January 27, 2014

Samvada ಸಂವಾದ :

Samvada is a media center where we discuss various topics like Health, Politics, Education, Science, History, Current affairs and so on.

Categories

Recent Posts

  • ಬೆಂಗಳೂರು‌ ಮಳೆ‌ ಅವಾಂತರ – ಕ್ಷಣಿಕ ಪರಿಹಾರಕ್ಕಿಂತ ಶಾಶ್ವತ ಪರಿಹಾರ ದೊರೆಯಲಿ!
  • RSS Sarkaryawah Shri Dattareya Hosabale hoisted the National Flag at Chennai
  • ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯೋತ್ಸವದ ಅಮೃತ ಮಹೋತ್ಸವ – ಸಾಮರಸ್ಯದ ಸಮಾಜದಿಂದ ಮಾತ್ರವೇ ದೇಶ ಬಲಿಷ್ಠವಾಗಲು ಸಾಧ್ಯ! – ದತ್ತಾತ್ರೇಯ ಹೊಸಬಾಳೆ
  • ಬಿಸ್ಮಿಲ್, ರಿಝಾಲ್ ಮತ್ತು ಬೇಂದ್ರೆ
  • About Us
  • Contact Us
  • Editorial Team
  • Errors/Corrections
  • ETHICS POLICY
  • Events
  • Fact-checking Policy
  • Home
  • Live
  • Ownership & Funding
  • Pungava Archives
  • Subscribe
  • Videos
  • Videos – test

© samvada.org - Developed By eazycoders.com

No Result
View All Result
  • Samvada
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us

© samvada.org - Developed By eazycoders.com

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In