• Samvada
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
Tuesday, January 31, 2023
Vishwa Samvada Kendra
No Result
View All Result
  • Login
  • Samvada

    ಪ್ರಬೋದಿನೀ ಗುರುಕುಲಕ್ಕೆ NIOS ಅಧಿಕಾರಿಗಳ ಭೇಟಿ

    ಮಾರ್ಚ್ ೧೧ರಿಂದ ೧೩ರವರೆಗೆ ಗುಜರಾತಿನಲ್ಲಿ ಅಖಿಲ ಭಾರತ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಸಭಾ

    Evacuation of Indians stranded in Ukraine by Government of India

    Ukraine Russia Crisis : India abstained from UNSC resolution

    Trending Tags

    • Commentary
    • Featured
    • Event
    • Editorial
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
  • Samvada

    ಪ್ರಬೋದಿನೀ ಗುರುಕುಲಕ್ಕೆ NIOS ಅಧಿಕಾರಿಗಳ ಭೇಟಿ

    ಮಾರ್ಚ್ ೧೧ರಿಂದ ೧೩ರವರೆಗೆ ಗುಜರಾತಿನಲ್ಲಿ ಅಖಿಲ ಭಾರತ ಪ್ರತಿನಿಧಿ ಸಭಾ

    Evacuation of Indians stranded in Ukraine by Government of India

    Ukraine Russia Crisis : India abstained from UNSC resolution

    Trending Tags

    • Commentary
    • Featured
    • Event
    • Editorial
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us
No Result
View All Result
Samvada
Home Articles

जनतंत्र की निरोगी प्रक्रिया के लिए: – मा. गो. वैद्य

Vishwa Samvada Kendra by Vishwa Samvada Kendra
February 5, 2012
in Articles
250
0
जनतंत्र की निरोगी प्रक्रिया के लिए: – मा. गो. वैद्य

मा. गो. वैद्य

492
SHARES
1.4k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

READ ALSO

ಮಾತಿನ ಕಠಿಣ ಕ್ರಮ, ಇನ್ನೆಷ್ಟು ದಿನ?

ದೇಶದ ಸುರಕ್ಷತೆಗಾಗಿ ಅಗ್ನಿಪಥ!

जनतंत्र की निरोगी प्रक्रिया के लिए: – मा. गो. वैद्य

मा. गो. वैद्य
यह अच्छी बात है कि हमने जनतांत्रिक प्रणाली स्वीकार की है| राजशाही, तानाशाही, फौजी- शासन इस प्रकार की राज्य-पद्धति की तुलना में, जनतंत्र कभी भी सरस है| कारण, इस पद्धति में प्रजा को सर्वाधिकार है| प्रजा अपने प्रतिनिधि चुनेंगी और वे प्रतिनिधि राज्य संस्था चलाएंगे ऐसी यह उत्तम व्यवस्था है| शायद चाणक्य का यह वचन है कि, ‘प्रजासुखे सुखं राज्ञ:, प्रजाहिते हितं राज्ञ:’ मतलब प्रजा के सुख में राजा का सुख और प्रजा के हित में राजा का हित होता है| आर्य चाणक्य के सामने जनतांत्रिक व्यवस्था नहीं थी; राजशाही ही थी; फिर भी उसने राजा के व्यक्तिगत सुख की अपेक्षा और हित की अपेक्षा प्रजा का सुख और हित श्रेष्ठ माना| इस कारण, जहॉं प्रजा के प्रतिनिधि राज्य चलानेवाले होते है, ऐसी जनतांत्रिक व्यवस्था की ओर से भी यही अपेक्षा कोई भी करेगा| लेकिन हमारे जनतंत्र का परीक्षण किया, तो क्या यह अपेक्षा वह पूर्ण करता है, ऐसा कहा जा सकेगा? बहुत दोष है हमारे जनतंत्र में|
बिकाऊ माल
हमारे देश में अभी पॉंच राज्यों में विधानसभा के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है| क्या दृष्य है इस चुनाव का? एक पंजाब का ही उदाहरण ले| गत ३० जनवरी को वहॉं मतदान हुआ| ७७ प्रतिशत मतदान हुआ| अच्छी बात है|  लेकिन इस चुनाव का प्रचार चल रहा था उस समय, पुलीस ने क्या क्या पकड़ा, इसका भी थोडा विवरण हमने जान लिया, तो हमारे प्रतिनिधि बनकर हमारे उपर राज्य करे, ऐसी इच्छा रखनेवाले लोग कैसे चारित्र्य के है, यह समझ आएगा| पंजाब की पुलीस ने चुनाव प्रचार के दरम्यान १२ करोड १३ लाख रुपये पकड़े| ३२ हजार ७ सौ लिटर शराब, ३८ किलो हिरॉईन, १०० किलो अफीम, ४ किलो ब्राऊन शुगर, देसी शराब बनाने के लिए प्रयोग किया जानेवाला ‘लहान’ नाम का द्रव्य २३ किलो, अफीम के पेड़ से निर्मित ‘डोडो पावडर’ २७०० किलो, यह नशे की सामग्री पकड़ी| इसके अलावा, ८८ हजार कॅपसुल्स और ३ लाख टॅब्लेट्स अलग| यह सामग्री, लोगों में जागृति निर्माण कर, उन्हें योग्य मतदान के लिए प्रवृत्त करनेवाली निश्‍चित ही नहीं है| यह, लोगों को बेहोश, धुंद और अविचारी बनानेवाली ही है| इस सामग्री का उपयोग कर चुनकर आनेवाले जनप्रतिनिधि जनता का हित देखेंगे या अपना हित देखेंगे? १२ करोड १३ लाख रुपये, यह चाय-पानी के लिए तो निश्‍चित ही नहीं होंगे| वह मत खरीदने के लिए ही होंगे| हमारी जनता में का यह बिकाऊ माल क्या कभी योग्य प्रतिनिधि चुन सकेंगा?
अन्यत्र भी वही
यह सारा सामान पुलीस ने पकड़ा है| न पकड़ा गया, पुलीस की चुंगुल से छूटा, इसके चौगुना तो होगा ही, इस बारे में संदेह नहीं| यह पंजाब की ही कहानी है, ऐसा नहीं| विधानसभा के केवल ७० सदस्य रहनेवाले छोटे से उत्तराखंड में भी यही प्रकार हुआ है| वहॉं, पुलीस ने डेढ करोड रुपये और १४ हजार लिटर अवैध शराब पकडी| वहॉं के चुनाव अधिकारीयों ने अब चुनाव आयोग से पूँछा है कि, इस शराब और पैसों का क्या करें?
मुझे यह स्पष्ट करना है कि, पंजाब या उत्तराखंड को अपवाद मानने का कारण नहीं| मणिपुर में भी यही हुआ होगा| गोवा में भी यही होगा और उत्तर प्रदेश के बारे में तो कुछ कहने का कारण ही नहीं| ४०० सदस्यों की वहॉं की विधानसभा है| कम से कम ४ हजार उम्मीदवार होंगे| मतदाताओं की संख्या भी १२ करोड से कम नहीं होगी| इतनी बड़ी संख्या में बिकाऊ माल भी कम नहीं होगा| उन्हें खरीदने के लिए कितने रुपयों की आवश्यकता होगी? और उन्हें मद्यधुंद करने के लिए कितने लिटर शराब या अफीम, या कॅपसुल्स अथवा टॅब्लेट्स की आवश्यकता होगी इसका कोई भी हिसाब लगा ले| पंजाब और उत्तराखंड की पुलीस यंत्रणा का अभिनंदन करना चाहिए कि, वे इतना तो माल पकड पाई| क्या उत्तर प्रदेश का पुलीस विभाग इतनी तत्परता दिखा पाएँगा?
सरकार का दायित्व
जनतांत्रिक व्यवस्था अच्छी है, लेकिन उसकी प्रक्रिया सदोष रही, तो उस व्यवस्था के  तीन-तेरा होने में कितना समय लगेगा? इसलिए, जनतांत्रिक व्यवस्था के सब समर्थकों ने, यह प्रक्रिया निरोगी कैसे रहेगी, इसका गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है| चुनाव-कानून ने, विधानसभा के लिए या लोकसभा के लिए खड़े हुए उम्मीदवार अधिक से अधिक कितना खर्च करे, इसकी मर्यादा निश्‍चित की है| यह अच्छी बात है| लेकिन इस मर्यादा में खर्च करनेवाले कितने उम्मीदवार होंगे? दस प्रतिशत भी निकले तो, तो भी बहुत हुआ, ऐसा कहने जैसे स्थिति है| इस पर कुछ उपाय? एक उपाय सुझाता हूँ| चुनाव का सब खर्च सरकार करे| इसके लिए जनता पर चुनाव कर लगाने में भी हरकत नहीं| इसी प्रक ार उम्मीदवार से ली जानेवाली अनामत राशि में भी अच्छी खासी वृद्धि करने में भी हरकत नहीं| अनामत राशि जप्त होने के लिए, अब प्राप्त मतों का जो प्रमाण है, वह भी अवश्य बढ़ाएँ| १० प्रतिशत से भी कम मत हासिल करनेवाले उम्मीदवारों की अनामत राशि जप्त की जानी चाहिए| चिल्लर और थिल्लर उम्मीदवारों पर अपने आप रोक लगेगी|
विशेष दंडविधान
सरकार ही विशिष्ट प्रमाण में उम्मीदवारों के भित्तिपत्रक (पोस्टर्स) छापकर दे| विशिष्ट संख्या में सार्वजनिक सभाओं का आयोजन करा दे| आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अपना प्रचार करने के लिए उन्हें समय उपलब्ध करा दे| कोई भी समाचारपत्रों में विज्ञापन नहीं दे सकेगा, ऐसा कडा कानून होना चाहिए| इन उपायों से बड़ी मात्रा में पैसों के गैरव्यवहार समाप्त होगे| इसके बाद भी, कोई पैसे बॉंटते, या शराब, अफीम आदि नशीले पदार्थ बॉंटते हुए, या उनकी यातायात करते हुए मिला, तो केवल उसकी उम्मीदवारी रद्द करके ही नहीं रूकना चाहिए, उसे आजीवन मतदान से भी वंचित रखना चाहिए| पंजाब में या उत्तराखंड में जो अवैध पैसे और शराब मिली है, वह किसके लिए थी, यह खोज निकालना कठिन नहीं होना चाहिए| पुलीस की गुप्तचर यंत्रणा यह आसानी से खोज सकेगी| ये गैर प्रकार करनेवाले उम्मीदवार जनतंत्र पर कलंक है; उसके हत्यारें है; वे जनतांत्रिक व्यवस्था नष्ट करनेवाले जंतु है, ऐसा मानकर उनके लिए विशेष दंडविधान होना चाहिए|
समाज प्रबोधन भी आवश्यक
अर्थात्, केवल कानून ही चारित्र्य का निर्माण करता है, ऐसा नहीं| समाज प्रबोधन की भी आवश्यकता है| जागृत नागर समाज (सिव्हिल सोसायटी) कितना बड़ा काम कर सकती है, यह हमने अण्णा हजारे और रामदेव बाबा ने शुरू किए आंदोलन-पर्व में देखा है| यह नागर समाज बहुत अच्छा समाज प्रबोधन कर सकता है| वह चुनाव के बारे में भी जागरूक बनना चाहिए| हमारे विद्यालय और महाविद्यलयों की भी इस प्रबेाधन कार्य में भूमिका हो सकती है| नागरिक-शास्त्र यह यह एक विषय अभ्यासक्रम में रहता ही है| उसमें बौद्धिक या औपचारिक जानकारी के साथ आचरणात्मक कर्तव्यों का भी बोध होगा, ऐसी रचना करना असंभव नहीं| बिल्कुल पॉंचवी कक्षा से अत्युच्च वर्ग तक, संबंधित आयु समूह को समझ सकें, इस पद्धति से अभ्यासक्रम की रचना करना सहज संभव है| जनतंत्र की प्रक्रिया निरामय रहने के लिए यह नितांत आवश्यक है|
और एक रोग
और एक रोग हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था को लगा है| वह है जातिगत आरक्षण का| पिछड़े हुओं की प्रगति के लिए आरक्षण आवश्यक था| पहले, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए राजनीतिक आरक्षण था| अब उसमें अन्य पिछड़ों (ओबीसी) का भी अंतर्भाव किया गया है| और पिछड़ापन निश्‍चित करने का निकष क्या? – जन्म से तय होने वाली जाति! क्या इसे हमारे सार्वजनिक जीवन में कुछ अर्थ शेष है? मेरे गॉंव का ही उदाहरण, एक अलग संदर्भ में मैंने दिया था| उसकी ही पुनरावृत्ति करता हूँ| हमारे गॉंव की जनसंख्या तीन हजार से अधिक होगी| मतदाता होंगे १८००| इस गॉंव में तथाकथित उच्च वर्णीयों के चार-पॉंच घर भी नहीं है| उनके मतदाताओं की संख्या निश्‍चित ही १५-१६ से अधिक नहीं है| कम से कम ८५ प्रतिशत ओबीसी होंगे| १५ प्रतिशत में एससी और एसटी समाविष्ट होंगे| इस गॉंव की ग्राम पंचायत के चुनाव में ओबीसी को आरक्षण क्यों? खुली सिट पर भी वे ही खड़े रहते है और आरक्षित सिट पर भी वे ही| वास्तविकता यह है कि, अब किसी के लिए भी राजनीतिक आरक्षण नहीं होना चाहिए| एससी और एसटी के लिए भी नहीं| ओबीसी के लिए बिल्कुल नहीं होना चाहिए| इसका मतलब हमारे समाज में पिछड़े लोग ही नहीं है, ऐसा नहीं| लेकिन उनका पिछड़ापन जन्म से आनेवाली जाति के कारण नहीं| वह आर्थिक कारण से है| उस निकष पर पिछड़ापन निश्‍चित किया जाना चाहिए और उन पिछड़ों के लिए शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में आरक्षण होना चाहिए| राजनीति के क्षेत्र में नहीं| मैं तो यह भी सुझाना चाहता हूँ कि, जिनके पालकों की वार्षिक आय एक लाख से कम है, उनके लिए ३० प्रतिशत आरक्षण रखकर, उनकी संपूर्ण शिक्षा का खर्च सरकार वहन करे; और जिनकी आय २ लाख से कम होगी, उनके लिए २० प्रतिशत आरक्षण रखे| हमने ६ से १४ वर्ष आयु समूह के लिए शिक्षा नि:शुल्क की है, इसकी बहादुरी बताने का समय अब बीत चुका है| पूर्व-प्राथमिक शाला में भी अनेकों के बच्चे रिक्षा आदि वाहनों से आते-जाते है, निजी शालाओं में भरपूर फीस भी देते है| इन बच्चों को पॉंचवी कक्षा में आते से ही शिक्षा नि:शुल्क क्यों हो?
राजनीतिक आरक्षण न हो
यह कुछ विषयांतर हुआ| हमारा मुद्दा राजनीतिक आरक्षण का है| हमारे संविधान के शिल्पकार डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने एससी और एससी के लिए राजनीतिक आरक्षण का प्रावधान केवल दस वर्ष के लिए किया था| आज साठ वर्ष हो गए फिर भी वही प्रथा चल रही है| जाति-पाति-भावनाविरहित समाज रचना हो, ऐसा डॉ. आंबेडकर के समान अनेक समाजसुधारकों का भी मत था और अभी भी है| उन सब ने एक होकर जाति-आधारित राजनीतिक आरक्षण का दृढता से विरोध करना चाहिए| डॉ. बाबासाहब का जयजयकार करना और वर्तन उनकी शिक्षा के विरुद्ध करना, यह दोगलापन और दांभिकता है|
वास्तव का भान
ग्राम पंचायत, जिल्हा परिषद, नगर परिषद और महानगर पालिका के क्षेत्रों में जातिगत आरक्षण का प्रावधान, स्वयं को पुरोगामी कहनेवाला महाराष्ट्र करे, इसका मुझे अचरज होता है| विधानसभा और लोकसभा के चुनाव के लिए आरक्षण नहीं| फिर भी हमारे छगन भुजबळ और गोपीनाथ मुंडे चुनकर आते ही है| वे अपनी जाति के बल चुनकर आते है या योग्यता के बल पर? और ऐसे अनेक कार्यकर्ता यदि लोकसभा और विधानसभा के लिए चुनकर आ सकते है, तो ग्राम पंचायत, जिल्हा परिषद और महानगर पालिका में क्यों नहीं चुनकर आएगे| इस जातिगत आरक्षण से हम सामाजिक समरसता के प्रवाह को मजबूत कर रहे है या, दुर्बल? समाज एकसंध बनाने का काम कर रहे या विघटन और अलगाववाद का पोषण कर रहे है?
राजनीति के क्षेत्र में काम करनेवाले और राज्यसभा के सदस्य, एक व्यक्ति से इस विषय पर मेरी थोडी चर्चा हुई| वे जाति-पातिविरहित समाज जीवन के पुरस्कर्ता है| लेकिन चर्चा के प्रवाह में उन्होंने कहा, ‘‘जाति यह वास्तव है| उसे नकार करकैसे चलेगा?’’ मुझे उनकी बात सही लगी| लेकिन मैंने उन्हें पूँछा कि, विद्यमान वास्तव में ही फँसे रहना है, या उसमें से बाहर निकलना है? जो है, उसका भान, सार्वजनिक कार्यकर्ताओं को रखना ही पड़ता है; लेकिन उसके साथ ही जो नहीं है, लेकिन होना चाहिए, उसका भी भान रखना ही होता है| ‘अस्पृश्यता’ यह, एक समय वास्तव था या नही? क्या आज वह वास्तव है? कम से कम मेरे गॉंव में तो सार्वजनिक या धार्मिक जीवन में भी उस वास्तव का कहीं अता पता भी नहीं है; और मेरा गॉंव ही केवल अपवाद होगा ऐसा मुझे नहीं लगता|
सामाजिक परिवर्तन के लिए
तात्पर्य यह कि, जो नहीं, लेकिन होना चाहिए, इसका भान रखते है, वे ही परिवर्तन करा सकते है| राजनीति के क्षेत्र में भी ऐसे लोग है| वे कम से कम स्थानिक स्वराज्य संस्थाओं के चुनाव से आरंभ करे| महाराष्ट्र ही इस बारे में अगुवाई करे| वह सब प्रकार के राजनीतिक आरक्षण रद्द करे| आज जैसे बहुसदस्यीय मतदार संघ है, वैसे बनाए| इससे जिन जिन समाज समूहों की जनसंख्या है, उन सब का ही चुनकर आनेवालों को विचार करना पड़ेगा| कुछ ऐसे समाज समूह होगे की जिन्हें कभी भी चुनकर आना संभव नहीं होगा, तो विशिष्ट प्रमाण में – जो पॉंच प्रतिशत से अधिक नहीं होगा – उन्हें संबंधित संस्था में नामनियुक्त करने का प्रावधान होना चाहिए| नागपुर महानगर पालिका में पहले ऐसा प्रावधान था| मेरे स्मरणानुसार उस समय नागपुर में केवल ५७ वार्ड थे| ५७ सदस्य सदस्य चुनकर आते और ये निर्वाचित सदस्य और तीन को नामनियुक्त करते थे| नामनियुक्ति की पद्धति जनतंत्र-विरोधी मानने का कारण नहीं| विधान परिषद में और राज्यसभा में भी नामनियुक्त सदस्य रहते है| उनका चुनाव कौन करे, यह तपशील का भाग है| और यह भी एक भ्रम दूर करने की आवश्यकता है की सामाजिक दृष्टि से पिछड़ों का पिछड़ापन दूर करने का कार्य, उस पिछड़ेपन के शिकार उनके जाति-बंधु ही करते है, ऐसा अनुभव नहीं| अन्य लोग भी यह कार्य कर सकते है, करते है और उन्होंने किया भी है| तात्पर्य यह की, सर्वंकष विचार करना यही परिवर्तन का आधार होना चाहिए| वही सुसंस्कृतता का और उदारता का निदर्शक होता है| जो टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करते है, उनकी ओर से मानसिक और वैचारिक परिवर्तन की अपेक्षा करना गलत है|
– मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com
  • email
  • facebook
  • twitter
  • google+
  • WhatsApp

Related Posts

Articles

ಮಾತಿನ ಕಠಿಣ ಕ್ರಮ, ಇನ್ನೆಷ್ಟು ದಿನ?

July 28, 2022
Articles

ದೇಶದ ಸುರಕ್ಷತೆಗಾಗಿ ಅಗ್ನಿಪಥ!

June 18, 2022
Articles

ಪಠ್ಯಪುಸ್ತಕಗಳು ಕಲಿಕೆಯ ಕೈದೀವಿಗೆಯಾಗಲಿ

Articles

ಒಂದು ಪಠ್ಯ – ಹಲವು ಪಾಠ

May 27, 2022
Articles

ಹಿಂದೂ ಧಾರ್ಮಿಕ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮಗಳಲ್ಲಿ ಅನ್ಯಮತೀಯರ ಆರ್ಥಿಕ ಬಹಿಷ್ಕಾರ : ಒಂದು ಚರ್ಚೆ

March 25, 2022
Articles

ಡಿವಿಜಿಯವರ ವ್ಯಾಸಂಗ ಗೋಷ್ಠಿ

March 17, 2022
Next Post

Key Indian Mujahideen ideologue arrested

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

ಸಾಮಾಜಿಕ ಕ್ರಾಂತಿಯ ಹರಿಕಾರ ರಾಜಾ ರಾಮ್ ಮೋಹನ್ ರಾಯ್

May 22, 2022

ಒಂದು ಪಠ್ಯ – ಹಲವು ಪಾಠ

May 27, 2022
Profile of V Bhagaiah, the new Sah-Sarakaryavah of RSS

Profile of V Bhagaiah, the new Sah-Sarakaryavah of RSS

March 16, 2015
ಕವಿ ಶ್ರೇಷ್ಠ ಎಂ. ಗೋಪಾಲಕೃಷ್ಣ ಅಡಿಗರ ‘ವಿಜಯನಗರದ ನೆನಪು’ ಕವನದ ಕುರಿತು…

ಕವಿ ಗೋಪಾಲಕೃಷ್ಣ ಅಡಿಗರ ಬದುಕು ಮತ್ತು ಬರಹ : ವಿಶೇಷ ದಿನಕ್ಕೆ ವಿಶೇಷ ಲೇಖನ

February 18, 2021

ಟೀ ಮಾರಿದ್ದ ನ್ಯಾಯಾಲಯದಲ್ಲೇ ವಕೀಲೆಯಾದ ಛಲಗಾತಿ!

March 8, 2022

EDITOR'S PICK

Book on VIVEKANANDA released by Sushma Swaraj in New Delhi

Book on VIVEKANANDA released by Sushma Swaraj in New Delhi

October 11, 2013
Narada Jayanti, Bengaluru Invitation

Narada Jayanti, Bengaluru Invitation

June 30, 2017
‘If AFSPA lifted from J&K, Pakistan will send terrorists into Valley’, says RSS Chief Mohan Bhagwat

‘If AFSPA lifted from J&K, Pakistan will send terrorists into Valley’, says RSS Chief Mohan Bhagwat

November 14, 2011
‘Till there is Social Discrimination in the Society, Social Reservation is needed’: RSS Chief Bhagwat

‘Till there is Social Discrimination in the Society, Social Reservation is needed’: RSS Chief Bhagwat

December 16, 2015

Samvada ಸಂವಾದ :

Samvada is a media center where we discuss various topics like Health, Politics, Education, Science, History, Current affairs and so on.

Categories

Recent Posts

  • ಬೆಂಗಳೂರು‌ ಮಳೆ‌ ಅವಾಂತರ – ಕ್ಷಣಿಕ ಪರಿಹಾರಕ್ಕಿಂತ ಶಾಶ್ವತ ಪರಿಹಾರ ದೊರೆಯಲಿ!
  • RSS Sarkaryawah Shri Dattareya Hosabale hoisted the National Flag at Chennai
  • ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯೋತ್ಸವದ ಅಮೃತ ಮಹೋತ್ಸವ – ಸಾಮರಸ್ಯದ ಸಮಾಜದಿಂದ ಮಾತ್ರವೇ ದೇಶ ಬಲಿಷ್ಠವಾಗಲು ಸಾಧ್ಯ! – ದತ್ತಾತ್ರೇಯ ಹೊಸಬಾಳೆ
  • ಬಿಸ್ಮಿಲ್, ರಿಝಾಲ್ ಮತ್ತು ಬೇಂದ್ರೆ
  • About Us
  • Contact Us
  • Editorial Team
  • Errors/Corrections
  • ETHICS POLICY
  • Events
  • Fact-checking Policy
  • Home
  • Live
  • Ownership & Funding
  • Pungava Archives
  • Subscribe
  • Videos
  • Videos – test

© samvada.org - Developed By eazycoders.com

No Result
View All Result
  • Samvada
  • Videos
  • Categories
  • Events
  • About Us
  • Contact Us

© samvada.org - Developed By eazycoders.com

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In