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रामनवमी ही क्यों?: -मा. गो. वैद्य

Vishwa Samvada Kendra by Vishwa Samvada Kendra
April 3, 2012
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रामनवमी ही क्यों?: -मा. गो. वैद्य
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इक्ष्वाकू वंश में जन्मे श्री राम की जयंति – रामनवमी – रविवार को मनाईगई. इक्ष्वाकू कुल में जन्मा राम, राजा दशरथ का पुत्र. अज राजा कापोता. विश्व विजयी रघू का प्रपौत्र. जन्मदाता पिता से प्रजा को प्रियलगनेवाले दिलीप का परप्रपौत्र. लेकिन, न दिलीप की जयंती मनाई जातीहै, न रघु की, न अज की, न दशरथ की. इक्ष्वाकू कुल में के केवलराम की जयंति ही मनाई जाती है. चैत्र शुक्ल ९ यह उनकी जन्म-तिथि.

संस्कृति के प्राण

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राम की ही क्यों? कारण, राम हमारी संस्कृति का प्राण है. शास्त्र बतातेहै कि, विशेष नामों को गुणात्मक अर्थ नहीं होता. Proper nouns have no connotation. यह बिल्कुल सच है. गरीबदास धनाढ्य होसकता है, और कुबेर नाम का कोई सामान्य लिपिक. हमारा ही उदाहरणले. हम ‘वैद्य’, लेकिन क्या हमें नाडी परीक्षा करते आती है? नहीं.लेकिन राम का वैसा नहीं है. वह विशेष नाम है फिर भी उसे गुणात्मकअर्थ प्राप्त हुआ है. कोई वस्तु या कोई वचन निरर्थक हो, तो हम कहतेहै इसमें राम नहीं. ‘राम’ मतलब कस. राम मतलब सार. अचूक औषधि‘राम-बाण’ उपाय होती है. कारण ‘राम के बाण से’ एक सुनिश्चितसुपरिणाम करने का अचूक अर्थ जुडा है. ‘रामो द्विर्नाभिसन्धत्ते’ मतलबराम, लक्ष्यभेद करते समय दुसरी बार बाण का निशाना नहीं लगाते,ऐसी वाल्मीकि की उक्ति है. राम जैसा ‘एकबाणी’ वैसे ही ‘एकवचनी’. ‘राम’ मतलब पुण्यकारक प्रारंभ. इसीलिए कोई मिला, तोपहले ‘राम राम’. यह सब जीवन में के प्रसंग. मरण में भी राम है ही.मरण में भी जो मरता नहीं वह राम होता है. किसी के मरने पर कहतेहै, वह राम को प्यारा हुआ. और सबसे अच्छा राज्य कौनसा? – तोराम-राज्य. राम में ऐसी प्रचंड गुण-संपदा समाई है. राम अद्वितीय है.राम अलौकिक है.

ताटिका वध

राम के जीवन में के कुछ प्रसंग याद करने जैसे है. यज्ञों का विद्ध्वंसकरने वाली ताटिका का विनाश करना होता है. विश्वामित्र इस कार्य केलिए राम को साथ ले जाते है. ताटिका का नाश करने के लिए उसे कहतेहै. राम के मन में प्रश्न निर्माण होता है ‘‘किसी स्त्री को मारे?’’लेकिन ताटिका जब सामने आती है, तब राम के मन की शंका, उसेदेखते ही समाप्त हो जाती है. महाकवि कालिदास ने सुंदर वर्णन किया है.कालिदास लिखते है –

उद्यैकभुजयष्टिमायतीं श्रोणिलम्बिपुरुषान्त्रमेखलाम्|
तां विलोक्य वनितावधे घृणां पत्रिणा सह मुमोच राघव:॥

एक हाथ उठाकर आगे बढ़ने वाली, मारे हुए पुरुषों की अतडियों काकमरपट्टा बांधी, विशालकाया ताटिका सामने आई और उसे देखते हीधनुष्य से छूटें बाण के साथ स्त्री वध के सन्दर्भ का संभ्रम भी राम केमन में से निकल गया.

योगिराज राम

राम १६ वर्ष का हुआ. ज्येष्ठ पुत्र. पिता दशरथ वृद्ध हो चुके थे. राम कोयौवराज्य का अभिषेक करने की योजना तय हुई. वह केवल अकेले दशरथके निर्णय से नहीं. उसके पूर्व नगरवासी और ग्रामवासियों के प्रतिनिधियोंको राजा ने बुलाया. उनके सामने अपना प्रस्ताव रखा. सब ने, मुक्तकंठ से राम की प्रशंसा करते हुए राजा की सूचना को अनुमोदन दिया.यौवराज्याभिषेक का मुहूर्त निश्चित हुआ. सर्वत्र आनंद की लहर चल पड़ी.राम को भी आनंद हुआ होगा. लेकिन सौतेली मॉं कैकेयी को यह नहींसुहाया. उसने राम को १४ वर्ष वन में जाने के लिए कहा. वह भी राम नेआनंद से स्वीकार किया. ‘दु:खेषु अनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:’दु:ख के समय उद्वेगविरहित और सुख के बारे में नि:स्पृह यह योगियोंकी वृत्ति राम नाम के एक युवक के मन में बसी थी. युवराज बननेवालाराम वनवासी राम बन गया.

हमारी संस्कृति

कैकेयी का पुत्र भरत मातुलगृह से आया. उसे अनायास राज्य मिला था.लेकिन वह सिंहासन पर नहीं बैठा. राम ज्येष्ठ पुत्र है. सिंहासन पर उसीका अधिकार है, ऐसा कहकर वह राम को, वापस अयोध्या लाने के लिएनिकल पडा. चित्रकूट में दोनों की भेट हुई. भरत ने खूब वाद किया. रामने नहीं कहा. दोनों के बीच चल रहा वाद, उपस्थित सब अचरज से देखरहे थे. कारण वह वाद ‘मैं राजा बनूंगा इसलिए नहीं था. तू राजा बनइसलिए था!’ क्या हम आज ऐसे वाद की कल्पना भी कर सकते है?राम ने ‘नहीं’ कहा इसलिए भरत राज्य पर बैठा? नहीं, उसने राम कीपादुका सिंहासनाधिष्ठित की! ऐसा राम, ऐसा भरत. यह हमारी संस्कृतिहै.

अखंड भारत हमारा
और राम वनवास में रहा. सीता और लक्ष्मण उसके साथ थे. सीता काअपहरण हुआ था. राम दु:खी हुआ. रोया भी. वह भी एक मानव ही था.लेकिन महामानव. स्वयं राम ही वाल्मीकि रामायण में अपना परिचय देतेहुए कहता है. ‘‘आत्मानं मानुषं मन्ये रामं दशरथात्मजम्’’ ‘‘मैं दशरथका राम नाम का लड़का एक मनुष्य हूँ, ऐसा ही मैं समझता हूँ.’’ बादमें सुग्रीव की भेट होती है. मित्रता होती है. हनुमान का साथ मिलता है.बाली का वध किया जाता है. बाली राम से पूछता है कि, ‘‘तूने मुझेक्यों मारा? मैंने तेरा क्या अपराध किया था?’’ राम का उत्तर वाल्मीकिके शब्दों में इस प्रकार है –

इक्ष्वाकूणामियं भूमि: सशैलवनकानना |
मृगपक्षिमनुष्याणां निग्रहानुग्रहेष्वपि ॥

‘‘यह संपूर्ण पृथ्वी, उसमें के पर्वत, वन और घने जंगलों सहित इक्ष्वाकूकी है और यहॉं रहनेवाले सब पशु हो या पक्षी अथवा मानव, उन्होंने पापकिया तो उन्हें दंड देने का और उन्होंने पुण्य किया तो उन पर अनुग्रहकरने का हमें अधिकार है.’’ संपूर्ण भारत एक है, अखंड है, ऐसी हीहजारों वर्षों से हमारी धारणा है. अंग्रेजों ने भारत को एक बनाया, ऐसामानना शुद्ध मूर्खता है.

राजा राम

राम और रावण के बीच युद्ध हुआ. अभूतपूर्व युद्ध. रावण मारा गया. लंकाराम के हाथ आई. सोने की लंका. किसे ने सुझाया भी होगा कि, यहींराज करो. पराक्रम से पादाक्रांत किया है. चित्रकूट का भरत चौदह वर्ष बादभी वैसे ही रहा होगा, इसका क्या भरोसा? सत्ता भ्रष्ट करती ही है! सहीमें राम लंका का राजा बनता तो राम ‘राम’ नहीं रहता. राम नेबिभीषण को लंका के सिंहासन पर बिठाया; और राम अयोध्या लौटआया. हनुमान को भेजकर भरत के वर्तन की टोह ली और फिर सब नेअयोध्या में प्रवेश किया. उसके बाद राम को विधिवत् राज्याभिषेक कियागया. राम राजा बना. राम-राज्य शुरू हुआ.

राम–राज्य

राम-राज्य ने राम की विलक्षण परीक्षा ली. रावण जैसे स्त्रीलंपट राजा केकैद में सीता रही थी. उसके चारित्र्य के बारे में संदेह व्यक्त करने वालीकानाफूसी लोगों में शुरू हुई. वह राम के कानों तक भी पहुँची. और रामने निर्णय लिया; सीता का परित्याग किया. ‘राजा’ किसलिए होता है?उसका क्या काम है? उसे क्यों राजा कहे? कितनी बड़ी किमत चुकानीपड़ती है उसे? कालिदास बताता है – ‘राजा प्रकृतिरंजनात्’- वह प्रकृतिका मतलब प्रजा का रंजन करता है, मतलब उसे संतुष्ट रखता है,इसीलिए ही उसे राजा कहा जाता है. मतलब राजा का आद्य कर्तव्य हैप्रजाराधन. कवि भवभूती ने अपने ‘उत्तर रामचरितम्’ इस सुप्रसिद्धनाटक में राम के मुँह में एक श्लोक दिया है. वह इस प्रकार –

स्नेहं दयां च सौख्यं च यदि वा जानकीमपि |
आराधनाय लोकस्य मुञ्चतो नास्ति मे व्यथा ॥

लोगों को खुष रखने के लिए स्नेह, दया, सुख, इतना ही नहीं प्रत्यक्षसीता का भी त्याग मुझे करना पड़ा, तो मुझे उसका दु:ख नहीं. भवभूतीने नाटक में जिस प्रसंग की कल्पना की है उसमें राम इस प्रतिज्ञा काउच्चारण करता है, तब सीता वहॉं उपस्थित है. उस पर सीता काअभिप्राय है, ‘‘इसीलिए आप रघुकुल में श्रेष्ठ है.’’

एक पत्नी

और आगे चलकर, राम पर सीता का त्याग करने का प्रसंग आता है.सीता शुद्ध है, यह जानते हुए भी जनता के संतोष के लिए राम सीता कात्याग करता है. और वह भी उस अवस्था में जब उसे साथी की, सहायताकी आवश्यकता होती है. वह आसन्नप्रसव होती है. यह, सीता इसव्यक्ति पर अन्याय है या नहीं? निश्चित ही है. लेकिन क्या सीता पर हीअन्याय है? नहीं. वह राम पर भी अन्याय है. उसका संपूर्ण पारिवारिकजीवन उद्ध्वस्त हो जाता है. उस समय बहुपत्नीत्व की प्रथा थी. रामदूसरा विवाह कर सकता था. लेकिन राम ने वैसा नहीं किया. उसने विरहकी आग में जलते रहना पसंद किया. आगे चलकर अश्वमेध यज्ञ काप्रसंग आया. यज्ञ पूजा में गृहिणी की आवश्यकता होती है. राम ने सीताकी सोने की प्रतिमा बनाकर उसके साथ यज्ञ-पूजा की. राम-राज्य इसप्रकार व्यक्तिनिरपेक्ष होता है. अपनों के बारे में ही नहीं तो अपने बारे मेंभी कठोर होता है. राज-धर्म के पालन में कठोरता अनुस्यूत होती ही है.

धर्म–राज्य

‘राम-राज्य’ का अर्थ केवल राम इस व्यक्ति का राज नहीं. उसेगुणात्मक अर्थ है. वह अर्थ बताता है कि ‘राम-राज्य’ मतलब धर्म-राज्य.‘धर्म-राज्य’ कहते ही कुछ आधुनिक नामसमझ नाक-भौं सिकुडने लगेंगे.उन्हें ‘राम-राज्य’ थिओक्रॅटिक स्टेट मतलब सांप्रदायिक राज्य लगेगा.इन नामसझों को ‘धर्म’ और ‘रिलिजन’ के बीच का अंतर ही पतानहीं. हमारे धर्म की अवधारणा में राज्य पंथनिरपेक्ष ही होता है. नहीं, वहवैसा होना ही चाहिए. ‘धर्म-राज्य’ का सही अर्थ होगा, नैतिकता काराज्य, न्याय का राज्य और नैतिकता मतलब चरित्र की शुद्धता, आचरणऔर व्यवहार में की पवित्रता और व्यक्ति की अपेक्षा तत्त्व और सिद्धांतकी श्रेष्ठता. व्यक्ति की अपेक्षा समाज की श्रेष्ठता बड़ी. व्यक्ति ने स्वयंको व्यापकता के साथ जोड लेना ही धर्म है. इस अर्थ से राम-राज्यमतलब धर्म-राज्य.

एकस्य मरणं मेऽस्तु

ऊपर सीता-त्याग के प्रसंग का उल्लेख किया है. श्रीराम के जीवन में,पुन: ऐसा ही एक प्रसंग आया है. वाल्मीकि रामायण के उत्तराखंड का वहप्रसंग है. राम का ऐहिक जीवन समाप्त होने का समय आया है. कालपुरुषश्रीराम से मिलने आए, उन्होंने एकान्त में राम से भेट मांगी औरजताया कि, कोई भी इस एकान्त का भंग नहीं करेंगा; जो करेंगा, उसेमृत्यु-दंड भोगना होगा. राम ने लक्ष्मण को पहरेदार नियुक्त किया.कालपुरुष के साथ संवाद चल रहा था उसी दौरान महाकोपी दुर्वास ऋषिवहॉं आये और अभी ही राम से भेट करनी है, ऐसा कहा. लक्ष्मण ने कुछसमय रुकने के लिए कहा. लेकिन कोई उपयोग नहीं हुआ. मेरे आने कीजानकारी नहीं दी, तो तुम्हारे साथ सारी अयोध्या भस्म कर दूँगा, ऐसीउन्होंने धमकी दी. लक्ष्मण ने विचार किया ‘‘एकस्य मरणं मेऽस्तु माभूत् सर्वविनाशनम्’’. आज्ञा तोड़ी, तो मुझे ही मृत्युदंड मिलेंगा. लेकिनअयोध्या तो बचेंगी. ऐसा विचार कर वह भीतर गया. राम और कालपुरुषका संवाद समाप्त हो चुका था. वे दोनों ही उठ खड़े हुए थे. फिर भीलक्ष्मण ने कहा कि, मुझे मृत्युदंड दो. मैंने आपकी आज्ञा का पालन नहींकिया. आखिर मामला वसिष्ठ के पास गया. वसिष्ठ ने कहा कि, आपलक्ष्मण का परित्याग करें और राम ने लक्ष्मण का परित्याग किया. रामबिना लक्ष्मण? हम कल्पना भी नहीं कर सकते. लक्ष्मण सीधे शरयू केकिनारे पर गये और उन्होंने वहॉं जलसमाधि ली.

विजयशालित्व

और एक मुद्दा. धर्म-राज्य मतलब नीतिमत्ता, सांस्कृतिक मूल्य, न्यायका राज्य, यह सच है. लेकिन इसका अर्थ वह दुर्बलों का राज्य ऐसा नहीं.वह राज्य, जो दंडनीय है उन्हें दंड देनेवाला होता है. ताटिका, बाली,रावण यह दंडनीय थे. उन्हें दंडित किया गया. दंड-शक्ति, किसी भीराज्य की आधार-शक्ति होती है. धर्म-राज्य में भी दंड-शक्ति का महत्त्वरहेगा ही. इसी प्रकार धर्म-राज्य नित्य विनयशील राज्य होता है, होनाचाहिए. राम सदैव विनयशील रहे है. ऐसा यह हमारे संस्कृति की सबविशेषताएँ प्रकट करनेवाला, राम-चरित्र है.
इसलिए राम-जन्म का उत्सवहै. रामनवमी मनाकर रामचंद्र के स्वच्छ, निरपेक्ष, पवित्र, कर्तव्यपरायणजीवन का स्मरण करना चाहिए. यह रामनवमी का महत्त्व है. राम राम!

–मा. गो. वैद्य

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